"वो"
चाँद रात की शीतलता।
रेशम के बंधन सी नाज़ुक,
फूलों सी उसमे कोमलता।
गौर-वर्ण तनु श्यामल कुंतल,
अधर, नाक,नयनो का दर्श।
नर्म रुई सा कोमल,स्वप्निल,
पुलकित करता उसका स्पर्श।
'वीणा', 'सुमित' का हर पल,हर कल
'सानवी' में बसा हुआ।
अंतस का हर कोना उसके
मोहपाश में फंसा हुआ।
हम सबके जिगर का टुकड़ा है वो,
उसपर ये जग हार दिया है।
जीवन का हर दुःख, तनाव
उस एक हंसी पर वार दिया है।
----वीणा धड़फले दुबे----
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