कवि- आ. निर्मल जैन 'नीर' जी द्वारा रचना ( विषय- पैसा/धन)

पैसा/धन....
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पैसा है पास~
हर रिश्ता हो जाता
अपना खास
कैसा गुमान~
लक्ष्मी होती चंचल
कर लो दान
क्यों है उदास~
आज हर इंसान 
पैसों का दास
पैसों का खेल~
अपनों से दूरियाँ
ओरों से मेल
प्रेम से बोल~
दौलत के ख़ातिर
विष न घोल
कहना मान~
अच्छे-बुरे का नही
रहता ध्यान
कोई न साथ~
अंतिम वक्त खाली 
होता है हाथ
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     निर्मल जैन 'नीर'
   ऋषभदेव/उदयपुर

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