बदलाव मंच राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय साप्ताहिक प्रतियोगिता हेतु गद्य रचना —
लाॅकडाॅन में शिक्षकों की स्थिति
कोरोना संक्रमण के इस वैश्विक संकट में देश के सभी स्कूल, कॉलेज एवं अन्य निजी शिक्षण संस्थान विगत मार्च से ही बंद पड़े हैं। शिक्षकों के सामने रोजी-रोटी की समस्या उत्पन्न हो गई है, शिक्षक समुदाय हताश और निराश है। सरकारी शिक्षकों को कई महीनों से वेतन नहीं मिला है खाने के लाले पड़े हैं,खैर इनका तो देर-सबेर वेतन का भुगतान होगा भी ये तो उम्मीद पर जिंदा है। पर प्राइवेट शिक्षक क्या करे कुछ समझ नहीं आ रहा है,इनके आमदनी के सारे स्रोत बंद हैं। इनके पास जो कुछ जमापूंजी था वह अब तक के लॉकडाउन में खत्म हो गया है। ऐसे में शिक्षक भारी परेशानियों के दौर से गुजर रहे हैं। जो किराए के मकान में रहकर शिक्षण का कार्य करते हैं उनकी दिक्कतें बढ़ गई हैं, कई शिक्षक तो शहर छोड़कर अपने गाँव जा चूके हैं।
एक तरफ शिक्षण-संस्थान के भवन का किराया सुरसा की मुंह की तरह बढ़ते चले जाना और दुसरी तरफ सरकार का इस सम्बन्ध में उदासीन रवैया शिक्षकों को निराश करता है।
सीधे व सरल शब्दों में कहें तो लाॅकडाॅन में शिक्षक समुदाय आर्थिक समस्याओं के साथ-साथ मानसिक परेशानियों से भी जूझ रहा है ।
किन्तु ऐसे समय में शिक्षकों को अपनी सहायता खुद करनी होगी सभी को एक-दुसरे का हाथ मजबूती से पकड़े रहना होगा और अपना आवाज बुलंद करना होगा हताश और निराश होकर अपना धैर्य नहीं खोना है । बस एक ही बात सोचना है समय अच्छा हो या बुरा हमेशा के लिए नहीं रहता है।
बुरा वक्त बीता है बीत जायेगा,
अच्छा वक्त फीर लौटकर आयेगा।
रचना स्वरचित,मौलिक व अप्रकाशित है।
©️राजीव रंजन गया (बिहार) 1सितम्बर 2020
लाॅकडाॅन में शिक्षकों की स्थिति
कोरोना संक्रमण के इस वैश्विक संकट में देश के सभी स्कूल, कॉलेज एवं अन्य निजी शिक्षण संस्थान विगत मार्च से ही बंद पड़े हैं। शिक्षकों के सामने रोजी-रोटी की समस्या उत्पन्न हो गई है, शिक्षक समुदाय हताश और निराश है। सरकारी शिक्षकों को कई महीनों से वेतन नहीं मिला है खाने के लाले पड़े हैं,खैर इनका तो देर-सबेर वेतन का भुगतान होगा भी ये तो उम्मीद पर जिंदा है। पर प्राइवेट शिक्षक क्या करे कुछ समझ नहीं आ रहा है,इनके आमदनी के सारे स्रोत बंद हैं। इनके पास जो कुछ जमापूंजी था वह अब तक के लॉकडाउन में खत्म हो गया है। ऐसे में शिक्षक भारी परेशानियों के दौर से गुजर रहे हैं। जो किराए के मकान में रहकर शिक्षण का कार्य करते हैं उनकी दिक्कतें बढ़ गई हैं, कई शिक्षक तो शहर छोड़कर अपने गाँव जा चूके हैं।
एक तरफ शिक्षण-संस्थान के भवन का किराया सुरसा की मुंह की तरह बढ़ते चले जाना और दुसरी तरफ सरकार का इस सम्बन्ध में उदासीन रवैया शिक्षकों को निराश करता है।
सीधे व सरल शब्दों में कहें तो लाॅकडाॅन में शिक्षक समुदाय आर्थिक समस्याओं के साथ-साथ मानसिक परेशानियों से भी जूझ रहा है ।
किन्तु ऐसे समय में शिक्षकों को अपनी सहायता खुद करनी होगी सभी को एक-दुसरे का हाथ मजबूती से पकड़े रहना होगा और अपना आवाज बुलंद करना होगा हताश और निराश होकर अपना धैर्य नहीं खोना है । बस एक ही बात सोचना है समय अच्छा हो या बुरा हमेशा के लिए नहीं रहता है।
बुरा वक्त बीता है बीत जायेगा,
अच्छा वक्त फीर लौटकर आयेगा।
रचना स्वरचित,मौलिक व अप्रकाशित है।
©️राजीव रंजन गया (बिहार) 1सितम्बर 2020
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