कवि- आदरणीय दिनेश चंद्र प्रसाद "दीनेश" जी द्वारा प्यारी रचना

बदलाव अंतरराष्ट्रीय-रा
दिनाँक १९-९-२०२०
शीर्षक-"खोटा सिक्का"
मैं खोटा सिक्का हूँ
मुझे कोई पसंद नहीं करता
क्योंकि मैं किसी के
काम नहीं आ सकता
भिखारी भी मुझे
पसंद नहीं करते
कई चालक भक्त
पुजारी की नज़र बचाकर
मुझे मंदिर में चढ़ा देते हैं
पर पुजारी निकाल देता है
इसमें भला मेरा क्या दोष है
ये तो बनाने वाले का दोष है
इस समाज का दोष है
जिसने मुझे खोटा
घोषित कर दिया
वैसे एक तरह से अच्छा हुआ
जैसे कोई विकलांग बच्चा
माँ-बाप के पास रहता है
वैसे मैं भी घर में पड़ा रहता हूँ
लोग मुझे बड़े प्रेम से देखते हैं
कि कैसे होता है खोटा सिक्का
मेरे ही कारण खरे का आपलोगों
के बीच बहुत ही महत्व है
एक बात और मैं खरे की तरह
यहाँ वहाँ नहीं दौड़ता
चौरासी लाख योनियों का
चक्कर मुझे नहीं लगाना पड़ता
इस चक्कर से मुझे मुक्ति मिली है
मैं मोक्ष को प्राप्त हो गया हूँ
"दीनेश" इस दुनिया में मैं अपनी
एक अलग पहचान बना लिया हूँ

दिनेश चंद्र प्रसाद "दीनेश" कलकत्ता
रचना मेरी अपनी मौलिक रचना है।

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