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जोश जगाए, होश जगाए,
नई ताजगी, मन में लायें ।
अलसायी सी 'एक सुबह',
भी बन जाती है, 'अल्हड़'।
सारी सुस्ती दूर भगा दे,
एक नया उत्साह जगा दे।
नैनों की नींद भगा दे,
भर दे चाय का 'कुल्हड़'।
ठंडी में अमृत की प्याली,
इसमें अदरक -लाची डाली।
हो जाड़े की धूप गुनगुनी,
सुबह की ताजा खबरों के संग।
सारी दुनियाँ इसकी दीवानी,
सुबह-सुबह चाय की दुकान।
गर्मा -गर्म एक चाय का कुल्हड़,
जोश जगाती ,असर दिखलाती।
राजनीतिक बहस हो जाती जारी,
ऊँचे स्वर और तर्क है भारी।
छोड़-छाड़ कर अपने काम,
भर -भर पीते चाय का कुल्हड़।
जोर-जोर से बोल-बोल कर,
सभी बने है, लाल बुझक्कड़।
गली-मुहल्ले,चौराहें हो,
या हो बाजार का नुक्कड़।
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स्वरचित और मौलिक
सर्वधिकार सुरक्षित
रचनाकारा-शशिलता पाण्डेय
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