कागज से कह दी#स्वाति'सरु'जैसलमेरिया जी द्वारा उम्दा रचना#

कागज से कह दी"
झेल नहीं पाया जब,मन ये आघात
कागज से कह दी अपनी बात

कलम की सहेली यह हर क्षण में साथ रही
सुख का सवेरा हो या दुःख की हो रात
कागज से कह दी अपनी बात ,

एक एक शब्द स्वर्णसिक्का बम जीता है
जब वो सही आसन पर कविता में आता है
कंठ में उमड़ पड़ता अमृतमय मेघ कोई
अन्तर में जब कोई दर्द गुनगुनाता है
अपने ही लोगों से जनमन जब खा जाता मात ,
"कागज से कह दी"
झेल नहीं पाया जब,मन ये आघात
कागज से कह दी अपनी बात

कलम की सहेली यह हर क्षण में साथ रही
सुख का सवेरा हो या दुःख की हो रात
कागज से कह दी अपनी बात

स्वाति'सरु'जैसलमेरिया

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