गुरु से ही है ज्ञान,
हो जाए गर भूल जो हमसे
साष्टांग दंडवत होकर करिये
कोटि कोटि प्रणाम,
शैशव होकर मांगिए,
हे गुरु क्षमादान।
कुपमंडुक हैं यहाँ बहुतेरे,
सबकी प्रवृत्ति एक समान,
गुरु श्रेष्ठ नहीं, सर्वश्रेष्ठ है,
शास्त्रों में वर्णित यही है ज्ञान,
हृदय पे न ले अन्यथा जान,
ज्योतिष भविष्यवाणी का यही विधान।
नमन है गुरु आपको,
वंदन करते सुबह शाम,
आपसे ही यह काया है,
जीवन क्या है दिया यह ज्ञान,
महिमामंडन क्या करें,
होगा यह सूर्य को दीया दिखाने समान।
अज्ञानी है हम भूलवश जो भूल हुई,
दे दो सत्यम को क्षमादान,
जीवनपर्यन्त ऋणी है आपके,
महिमा आपकी कही न जाए,
बस यही की आप हो सर्वज्ञता,
आप हो महान।
शिक्षकों को समर्पित 🙏💐।
*डॉ सत्यम भास्कर भ्रमरपुरिया*
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