बदलाव मंच अंतराष्ट्रीय राष्ट्रीय
शीर्षक - "मन का भाव"
(हाथरस की घटना से प्रभावित होकर)
अरे! कहाँ था? हमारे देश का संविधान।
परिवार को मनीषा का ,शव तक न हुआ प्रदान।
ईश्वर,अल्लाह,रब,प्रभु क्या हो गए थे? अंतर्ध्यान।
जिसका हम सब लोग, रोज लगाते है ध्यान।
मनीषा की चर्चा करेंगे मन की बात में।
पुण्यतिथि में मोमबत्तियां पकड़ा देंगे हाथ में।
दानव,दैत्य का जन्म हुआ है, मानव के वेश में।
तन की लालसा तृप्त के लिए आते है आवेश में ।
आखिर! कब तक ऐसा होगा? इस देश में।
बेटियों का जीना मुश्किल हो गया है परिवेश में।
ऐसी तीर दो भारत माँ मेरे तरकस में।
जिनको चलाऊँ दरिंदों पर हाथरस में।
फिर न होगी ऐसी कोई घटना खेत,बस में।
दिखा दू पानी नहीं ,खून है मेरे नस-नस में।
अब इंसाफ की उम्मीद नहीं है, सरकारो से।
बिक गई है 'भारत माँ' ,खाखी वर्दी गद्दारों से।
✍🏻नारायण प्रसाद
दुर्ग ,छत्तीसगढ़।
1 टिप्पणियाँ
बहुत बढ़िया रचना, हार्दिक शुभकामनाएं
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