कवयित्री डॉ.मीना कुमारी'परिहार' जी 'लाल बहादुर शास्त्री' जी विषय पर रचना

जय जवान -जय किसान के प्रणेता
       लाल बहादुर शास्त्री 
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     "देश के लाल थे हमारे
  लाल बहादुर शास्त्री जी कमाल थे"
"तुमको नमन!भारत के अनमोल लाल
तुम्हें पाकर, भारत  -भूमि हुई निहाल"
गुदड़ी के लाल को शत-शत नमन!!
     जीवन एक कठोर साधना है और राष्ट्र भक्ति एक कठिन संकल्प भारत के महान सपूत लाल बहादुर शास्त्री एक ऐसे ही महान पुरुष थे, जो इस साधना और संकल्प में  खरे उतरे। वे एक ऐसे महामानव थे, जिन्होंने अपने उच्च आदर्शों से आनेवाली पीढ़ियों को नमी प्रेरणा दी। जो आज भी प्रासंगिक है।
       लाल बहादुर शास्त्री का जन्म 2अकटुबर 1904को मुगल सराय के एक सामान्य परिवार में हुआ था। उनके पिता श्री शारदा प्रसाद श्रीवास्तव एक साधारण अध्यापक थे। वे एक आदर्श शिक्षक होने के साथ-साथ सहृदय एवं उदार चरित्र के व्यक्ति थे, जिनका प्रभाव लालबहादुर  पर गहरे रूप से पड़ा था। पिता की मृत्यु आकस्मिक हो जाने पर अल्पायु में ही उन्हें आर्थिक बोझ का सामना करना पड़ा। मां राम दुलारी ने लालबहादुर में स्वाभिमान की भावना ऐसी कूट-कूटकर भरी थी कि एक बार 12 वर्ष की अवस्था में अपने साथियों के साथ गंगा पार मेला देखने ग्रे लालबहादुर जब लौटने लगे, तो उनके पास पैसे नहीं थे। उन्होंने अपने साथियों को यह बात नहीं बताई। सभी मित्रों के चले जाने के बाद उन्होंने गंगा का चौड़ा तक तैरकर पार किया।
      हाई स्कूल की परीक्षा हरिश्चन्द्र स्कूल वाराणसी से पूर्ण की। 1921में गांधी जी के साथ असहयोग आंदोलन में शामिल हो गए। काशी विद्यापीठ से बी.ए.की उपाधि प्राप्त करने के बाद अपने नाम  के आगे बी.ए.न जोड़कर शास्त्री जोड़ दिया, ताकि इससे भारतीयता की पहचान हो। इसके बाद अपने साथियों के साथ लाला लाजपत राय की पीपुल्स सोसाइटी में शामिल होकर हरिजन उद्धार किया। बाद के दिनों में 'मरो नहीं, मारो'का नारा लालबहादुर शास्त्री ने जिसने एक क्रान्ति को पूरे देश में प्रचंड किया। उनका दिया हुआ एक और नारा 'जय जवान जय किसान'तो आज भी लोगों के जुबान पर है।भारत में ब्रिटिश सरकार के खिलाफ महात्मा गांधी के द्वारा चलाए गए असहयोग आंदोलन के एक कार्यकर्ता लाल बहादुर जी 1921में थोड़े समय के लिए जेल गए। वे भारत सेवक संघ से जुड़ गए और देशसेवा का व्रत लेते हुए यहीं से अपने राजनैतिक जीवन की शुरुआत की। शास्त्री जी सच्चे गांधीवादी थे जिन्होंने अपना सारा जीवन सादगी से बिताया और उसे गरीबों की सेवा में लगाया। भारतीय स्वाधीनता संग्राम के  सभी महत्वपूर्ण कार्यक्रमों वो आंदोलनों में उनकी सक्रिय भागीदारी रही। स्वाधीनता संग्राम के जिन आंदोलनों में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही उनमें 1921का असहयोग आंदोलन, 1930का दांडी मार्च तथा 1942का भारत छोड़ो आंदोलन उल्लेखनीय है।
       शास्त्री जी ने कार्यकाल के दौरान देश के तरक्की और खुशहाली पर विशेष ध्यान दिया। उन्होंने देश में दुग्ध उत्पादन बढ़ाने के लिए क‌ई प्रयास किए। उनके ही शासनकाल में देश में फूड कारपोरेशन की भी स्थापना हुई। अपने इन दो वर्षीय छोटे से कार्यकाल में उन्होंने देश के किसान तथा मजदूर वर्ग के हालात सुधारने के लिए क‌ई फैसले लिए। जिसने देश को तरक्की की एक नई दिशा दी।
      शास्त्री जी ने एक प्रधानमंत्री के साथ ही स्वाधीनता सेनानी के रूप में भी देश की सेवा की, यही वजह है कि हर भारतीय के हृदय में उनके लिए इतना सम्मान है। देश के किसान और सैनिक के प्रति उनका सम्मान उनके जय जवान,जय किसान के नारे में झलकता है, यही कारण है कि उनका यह नारा आज भी इतना प्रसिद्ध है। लाल बहादुर शास्त्री एक सच्चे देशभक्त और दृढ़ इच्छाशक्ति वाले नेता थे। जिन्होंने अपना पूरा जीवन देश की सेवा में लगा दिया। अपने विनम्र स्वभाव और सादगी भरे जीवन के कारण वह देश के सबसे प्रिय नेताओं में एक माने जाते हैं।
        1666में'ताशकंद समझौते पर दस्तखत करने के बाद शास्त्री जी इस सदमे को झेल ना सके और हृदयाघात से उनकी मृत्यु हो गई। हालांकि क‌ई लोगों के द्वारा इस बात पर संदेह व्यक्त किया जाता है और उनकी मृत्यु को एक सोची-समझी साजिश के तहत की गती हत्या माना जाता है। लेकिन इसका कोई ठोस प्रमाण नहीं है क्योंकि उनका पोस्टमार्टम किया ही नहीं गया था।
        शास्त्री जी एक ईमानदार राजनैतिक नेता थे और पूर्ण रूप से गांधीवादी विचारधारा को मानने वाले व्यक्तियों में से एक थे। उन्होंने सदैव गांधी जी का अनुसरण किया और उनके आंदोलनों में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया। ये मर कर भी आज अमर हैं।
   उनके सत्यनिष्ठा, देशभक्ति एवं सरलता के कारण उन्हें सदैव याद किया जाता है और मृत्यु पश्चात उन्हें भारत रत्न से नवाजा गया। वे एक सच्चे राजनेता थे जो भले ही इतिहास के पन्नों पर दर्ज हो लेकिन भारतीयों के हृदय में सदैव जीवित रहेंगे।
 "भारत के अमर विचारों को नहीं मिटने देंगे
शास्त्री जी के मूल्यों का पालन करने से कभी पीछे नहीं हटेंगे"
"देश खड़ा था विकट परिस्थितियों में
शास्त्री जी आते बनकर देवदूत
ऐसी स्थितियों में"
ऐसे लाल को कोटि-कोटि नमन!!

डॉ मीना कुमारी'परिहार'

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