।। आखिर कब तक ।।
न मेरी कविता मरी न ये जिज्ञासा मरी ।
दुःख इस बात का है कि फिर मनीषा मरी ।
इमारत ढही तो दिखी हजारों गाड़ियां ।
आज कहाँ गयी कि रहती थी जो बाड़ियाँ ।।
कितने लोग पहुँचे है घर वो भी थी बेटी ।
कोई देखने नही आया असहाय लेटी ।।
अरे कबतक बेटियाँ ही बलि पे चढ़ेंगी ।
कैसे इस घृणित समाज मे वो बढ़ेंगी ।।
आज लेखनी भी चलती हुई है शर्मिंदा ।
कुछ नही कर पा रही फिर भी है जिंदा ।।
जाग नारी शक्ति ले चंडी का अवतार ।
आज फिर तेज कर कृपाण की धार ।।
कुकर्म ने कैसी दिखलाई निर्दयता ।
नियति नही कर पाई उनसे क्रूरता ।।
रामराज्य लाने वाले कब तक दे अन्याय ।
दुष्कर्मी को मृत्युदंड नही हैं क्या सर्वमान्य ।।
बॉलीवुड दलाल मीडिया भी दिखलाती है ।
गरीब बेटियों की चीख तो दब जाती है ।।
सारे मुद्दों को वो खूब ही चिल्लाती है ।
पर उस बेटी की कराह नही सुन पाती है ।।
अरे पापियों तेरे बहन बेटियाँ नही होती ।
दुष्कर्म से तेरी रूह नफरत के बीज बोतीं ।।
हैवानी से फिर हुआ प्रदेश कलंकित ।
सबकी बहन बेटियाँ हो रही सशंकित ।।
जुल्म करने वालों का मर गया जमीर ।
न्याय व्यवस्था से मन हो गया अधीर ।।
कैसे बेटी को उस हाल में भी जबरन जलाया ।
माँ बाप को उसके अन्तिम दर्शन से तरसाया ।।
आखिर कब तक ये अत्याचार बढ़ेगा ।
इस पर भी क्या कभी सदाचार चढ़ेगा ।।
गीता की आंखे नम है देते हुए श्रद्धांजलि ।
निस्तब्ध है आज उसकी भी काव्यांजलि ।।
गीता पाण्डेय
उपप्रधानाचार्या
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