कवि अरविंद अकेला जी द्वारा रचना “जानें क्यों मुझको गर्मी लगती है "

हास्य व्यंग्य कविता 

जानें क्यों मुझको गर्मी लगती है 
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जाता हूँ मैं जब जब पास उसके ,
जाने क्यों मुझको गर्मी लगती है,
दिल मेरा धड़क सा जाता है,
जब मुझसे बातें वह  करती है।

जब जब आती वह पास मेरे,
मेरे दिल की बत्ती गुल हो जाती है,
मेरा पावर कहाँ खो  जाता है,
जब जब वह आँख दिखाती है।

फोन पर करती वह मीठी बातें,
जब अपने काम की बात बताती है ,
जब निकल जाता काम उसका,
मुझको वह भुल जाती है।

याद आता वह दिन मुझको,
जब उससे शादी ठीक हो जाती है,
कहते थे लोग गाय समान बिटिया मेरी,
पर जाने क्यों बैल बन जाती है।

कमाता हूँ दिन रात मेहनत करके,
वह सारी कमाई चटकर जाती है,
मांगता हूँ जब कुछ रुपए  पैसे,
उल्टी ठेंगा मुझको दिखाती है। 

शादी करके भी रहते अकेला,
जब जब ऐसी पत्नी  मिल जाती है,
क्या सुनहरे वो दिन थे अपने,
जब कुंवारापन की याद आती है।
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          अरविन्द अकेला

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