कवयित्री मीनू मीनल जी द्वारा रचना “नीला लिफाफा”

विश्व डाक दिवस पर विशेष 
एक लघुकथा 
*नीला लिफाफा*
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मोबाइल के काॅल,वीडियो काॅल ,चैंटिग के युग में पुर्णतया उसपर निर्भर आज रमादेवी सुबह- सवेरे चाय के कप के साथ स्मृतियों की गुफाओं में प्रवेश कर गईं।

 चालीस-पैंतालिस  वर्ष पूर्व एक नीला लिफाफा 'अन्तर्देशीय पत्र' आता था जिसके उपर 'अंदर हवेली' शब्द रेखांकित रहता था  वह पत्र ननिहाल में मांँ के हाथों पहुंँच कर ही  गंतव्य को प्राप्त होता था ।  बाबूजी के द्वारा लिखी गई चिट्ठी मांँ के नाम होती होती थी।'अंदर हवेली' काफी वर्षों पुरानी परंपरा में कायम रही।ऐसा महसूस होता है कि अभी इन्फार्मेशन टेक्नोलॉजी के उड़ते समय में फेसबुक, ट्वीटर​, वाट्सएप ,इंस्टाग्राम आदि के जमाने में पति-पत्नी के रिश्ते की अंतरंगता​ भी  खत्म होती हुई दिखावे की ओर  ढकेली जा रही है।पति का पत्र पत्नी के नाम, पत्नी का पति  के नाम बजाय एक दूसरे तक पहुंँचने के सारी दुनिया तक पहुंँच जाती है।सिलसिला लाइक्स, कमेंट्स का।सैंकड़ों लोगों के पढ़ने के बाद में शायद पति-पत्नी देखें, पढ़ें।
हरेक की अपनी महत्ता है।जहांँ शर्माना  है वहांँ ठहाका कदापि शोभनीय नहीं है।जयमाल डालती लड़कियों को किसी ने ठहाके लगाते नहीं देखा होगा।वहीं जहांँ ठहाके की बात है तो मुस्कुराना तो वांछनीय है।इसतरह  शोभा का  हरेक स्थान निर्धारित है जो अघोषित होते हुए भी सर्वमान्य है। पति-पत्नी के रिश्ते तो बेहद अंतरंगताओं से भरे, बहुत ही निजी है, जिसका भौंडा प्रदर्शन हास्यास्पद लगता है।ये प्रवृत्ति अधेड़ों में  ही बढ़ रही है।अतिशय भाग -दौड़ में युवा पीढ़ी को तो इतनी फुर्सत ही नहीं है।
मर्यादा के मापदंड की स्थापना कर पथ प्रदर्शित करना बड़ों की जिम्मेवारी बनती है जो छोटों के लिए अनुकरणीय होगी।

इस तरह की बातों को सोचती जैसे ही रमा देवी खाली कप को सिंक में रखने के लिए तत्पर हुईं ,अमेरिका में बसे बेटे का वीडियो काल आ गया और वह नवजात जन्मी अपनी पोती के  हाथ पाँव मारते देख पुचकारने लगीं।


  *मीनू मीनल*
  रांँची।

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