सादर समीक्षार्थ
विषय - ननिहाल
विधा - कविता
बचपन की यादों में बसा है
नाना- नानी का घर प्यारा
हर साल छुट्टियाँ बिताने
जाते थे हम नानी के घर..।।
अजब उत्साह में भरे रहते
सबको खुश होकर बतलाते
और मन में जाने क्या-क्या
ख्याली पुलाव पकाया करते..।।
कई दिनों तक हम क्या-क्या
जाने की थे तैयारी हम करते
वो उबाऊ बस सफर करके
शाम गए ननिहाल थे पहुंचते..।।
कभी 5 -10 पैसे मिलते ही हम
राजा से बन बड़े खुश रहते थे
टॉफी, चूरन,बर्फ का गोला
और भी जाने क्या क्या खाते थे ..।।
सुबह से कब शाम हो गई
मस्ती में हम डूबे रहते थे
नाना नानी के संग जाने
क्या- क्या बातें करते थे ..।।
डॉ. राजेश कुमार जैन
श्रीनगर गढ़वाल
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