कवयित्री गीता पाण्डेय जी द्वारा रचना “नारी की हुँकार”

_शीर्षक:- नारी की हुँकार_

*बहनों कब तक आँसू बहावोगी,* 
*अब तो खड़क उठावो।*
*नारी सदी का शंखनाद कर,*
*फिर से बिगुल बजावो।* 
*करुण रस से भीग रही क्यूँ ?*
*तुम नही हो अबला।*
*कहां गई वह सिंहसवारी,*
*जिसका स्वरूप था सबला।*
*कब तक सहन करोगी बहना,*
*अब तो खड़ग उठाओ।*
*वीरप्रसूता सबला हो, उठो!*
*फिर सोई शक्ति जगाओ।*
*दुराचारी कंस व रावण-*
*हर पल यहां  घूम रहे हैं।*
*बहन बेटियों की इज्जत को,*
*वे खिलवाड़ कर रहे हैं।*
*भिड़ पड़ो दुश्मनों से अब,*
*बन ज्वाला फूट पड़ो।*
*गीत प्रणय के मत गाओ अब।*
*रानी-झांसी के सुर अपनावो।*
*अरे भगिनी ! कब तक-*
*आँसू बहावोगी*
*इस राह से कभी अपना-*
*अधिकार नहीं पाओगी।*
*अपनी सच्चरित्र,सादगी नेककर्मों से,*
*शक्ति फिर से पावो तुम।*
*राह बड़ी लंबी है रुको मत* *लक्ष्य दूर है अनीति से भिड़ जावो तुम।*
*दहेज-दानव, दुष्कर्मी संग-*
*कुरीतियों को आग लगा दो।*
*नारी सदी का शंखनाद कर*
*फिर से बिगुल बजा दो।*

               
         गीता पांडेय 
  रायबरेली उत्तरप्रदेश

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