*अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस पर समर्पित मेरी रचना*
*सोन -चिरैया*
मैं एक *सोन- चिरैया*
मखमली पांँखो वाली ।
हीरे की कनी से सजी
दो सुंदर आंँखोंवाली।।
चांँदी के हैं पांँव मेरे
चोंच बने हैं सोने के।
मोतियों का गलहार देखो
जड़े नगीने खुशबू के।।
फुदक- फुदक कर जंगल-जंगल
बागों -बागों उड़ती जाऊँ।
फूलों से लदी डालियों पर
झूला झूल कर मैं इतराऊंँ।।
मैं एक *सोन -चिरैया*
मखमली पांँखोंवाली।
हीरे की कनी से सजी
दो सुंदर आंँखों वाली।।
मत करो बंद पिंजरे में
लोहे से टकरा जाती हूंँ।
अपनी ही चोंच से घायल
खुद ही तो हो जाती हूंँ।।
सागर, पर्वत, वादियों में
आसमान में उड़ने दो ।
ताल -तलैया में तिनकों पर
उन्मुक्त उसमें बहने दो।।
बह रहा झरनों में जीवन
मधुर -मधुर उसके संगीत
खुशबू महके हैं चहुँओर
पिंजरे में रहती भयभीत
मैं एक *सोन- चिरैया*
मखमली पांँखो वाली ।
हीरे की कनी से सजी
दो सुंदर आंँखोंवाली।।
*मीनू मीना सिन्हा मीनल विज्ञ*
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