स्मिता पाल (साईं स्मिता)जी द्वारा खूबसूरत रचना#

मांँ शारदे को नमन मंच को नमन


*शीर्षक: आखिरकार सच ही है रखवाला!*
चंपक सेठ हैं व्यापारी बड़ा
नौकर चाकर सब पास है पड़ा
धन-दौलत उसके सर पर है चड़ा
सच्चाई छोड़ झूठ का दामन हैं धरा।

बापूजी लाख समझाते हैं,
मांँ दुहाइयां देती हैं,
जीवनसंगिनी परेशान है,
पर चंपक पर झूठ का भूत सवार है।

बचपन का ज्ञान वह भुला है,
सिद्धांतों को छोड़ झूठ के साथ वो चला है।
जीवन के आदर्शो को वह छोड़ा है,
झूठा जीवन को आराध्य बनाया है।

पर समय का पहिया घुम ही गया,
अचानक बापूजी का तबीयत बिगड़ गया।
ऑपरेशन का खर्चा लाखों में था,
पर चंपक का पैसा व्यापार में फंसा था।

चंपक की झूठ का किस्सा गांव-गांँव में है,
सबको लगा यह उसकी नई चाल हैं।
परेशान चंपक को कुछ सूझ ना रहा था,
इस वक्त उसके आराध्य झूठ का आशीष भी ना था।

पर विधि ने अपना चमत्कार दिखला ही दिया,
डॉक्टर बापूजी का आदर्श शिष्य निकला।
बापूजी का ऑपरेशन कर उसने गुरु दक्षिणा चुकाया,
कभी बापूजी ने ही उसका फ़ीस था चुकाया।

चंपक को आत्मग्लानि सताने लगा,
झूठ से आत्ममुग्धता अब खोने लगा,
हाथ जोड़ उसने माफ़ी मांगा,
फिर कभी झूठ का हाथ ना थामने का वचन है लिया।

झूठ का बोलबाला छन भर का है,
सच का उजाला चिर निरंतर है।
अंत में झूठ का होता मुंँह काला है,
क्योंकि सच्चाई ही आखरी रखवाला है।।

*- स्मिता पाल (साईं स्मिता) झारखंड*
*(स्वरचित एवं मौलिक)*

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