नारी सम्मान
नारी हूं मैं नारी का सम्मान चाहिए ।
मुझको मेरे होने का अभिमान चाहिए ।
नहीं चाहिए शानो-शौक़त नहीं चाहिए दौलत,
बेटी हूँ मैं बेटी का बस मान चाहिये
नहीं चाहिए तोहफ़े शोहरत नहीं चाहिए
बहू हूँ मैं, बस बहू वाला मान चाहिये
नहीं चाहिए पूजा मेरी, नहीं दिलासा कोई,
पत्नी हूँ मैं, बस पत्नी का मान चाहिये
नहीं चाहिए कठपुतली सा अब नर्तन कोई,
नहीं चाहिए सपनों वाली झूठी आशा कोई
मैं चेतन हूँ चेतनता का मान चाहिए ।
मुझको मेरे होने का अभिमान चाहिए ।।
अगर चाहते सृष्टि हो सुंदर अपनी सोच सुधारो,
मैं जननी हूँ कोख तुम्हारी मुझको तुम ना मारो।
सहनशील हूँ, रणचंडी भी, समतामय वंदन हूँ,
नहीं चाहिए आडम्बर ना कहती मुझको तारो
मैं कोई सामान नहीं हूँ, ममता का क्रंदन हूँ
वहसी नज़रों से देखें, मक्कार कहें वंदन हूँ
ढोंग दिखावा दया भाव की हमको नहीं जरूरत
हमसे ही यह सृष्टि चल रही मानवता की चन्दन हूँ
हर चेहरे की मुझको अब पहचान चाहिए।
नारी हूँ मैं नारी का सम्मान चाहिए।
डॉ अलका पाण्डेय मुम्बई
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