*नमन बदलाव मंच*
आदरणीय पाठको....
मैं *गरिमा विनित भाटिया अमरावती महाराष्ट्र* से आप सभी के सामने अपने विचार व्यक्त करने जा रही हूँ
मेरे आदरणीय एवं प्रिय पाठको बचपन में हम सभी ने 2 अक्टूबर के विषय में एक गीत सुना ही होगा मै उस गीत पर प्रकाश डालते हुए कुछ पंक्तिया आपके समक्ष प्रस्तुत करना चाहूँगी जो निम्न है ___
*आज है 2 अक्टूबर,*
*आज के दिन दो फूल खिले थे*
*जिनसे महका हिन्दुस्तान*
*एक का नारा अमर रहें*
*एक का नारा जय जवान जय किसान*
जब भी हम भारतीय मुद्रा रूपया की बात करते है तो गाँधी जी की छवि हमारे सामने स्वत ही आ जाती है कितने महापुरुष है वह जिनका छाया चित्र हर व्यक्ति के पास संजोया हुआ मिल ही जाता है अहिंसा, सत्य उनके आदर्श थे देश को आजाद कराने में उनका पूर्ण रूप से योगदान रहा है
वहीं दूसरी ओर जय जवान जय किसान का कथन कहने वाले देश के दूसरे प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री ने अपने कार्यकाल के दौरान देश को कई संकटों से उबारा । साफ-सुथरी छवि के कारण ही विपक्षी पार्टियां भी उन्हें आदर और सम्मान देती है.
मैं आज उनके इस कथन के विषय में विस्तार में बात करना चाहूँगी उनके इस नारे के पीछे बड़ी ही दिलचस्प कहानी है. 1962 के भारत-चीन युद्ध से देश आर्थिक रूप से कमजोर हो चुका था. जब शास्त्री जी प्रधानमंत्री बने तब देश में खाने का संकट था और खाने की चीजों को निर्यात किया जाने लगा. इसी दौरान 1965 में भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध शुरू हुआ.
भारतीय सेना लाहौर के हवाई अड्डे पर हमला करने के लिए सीमा के भीतर पहुंच गयी थी. घबराकर अमेरिका ने अपने नागरिकों को लाहौर से निकालने के लिए कुछ समय के लिए युद्धविराम की अपील की. उस समय हम अमेरिका की पीएल-480 स्कीम के तहत हासिल लाल गेहूं खाने को बाध्य थे. अमेरिका के राष्ट्रपति लिंडन जॉनसन ने शास्त्री जी को कहा कि अगर युद्ध नहीं रुका तो गेहूं का निर्यात बंद कर दिया जाएगा. वहीं, शास्त्री जी ने कहा- बंद कर दीजिए गेहूं देना.
इसके बाद अक्टूबर 1965 में दशहरे के दिन दिल्ली के रामलीला मैदान में शास्त्री जी ने देश की जनता को एक दिन का उपवास रखने की अपील की. साथ ही कृषि उत्पादन में आत्मनिर्भरता के लिए उन्होंने पहली बार ' *जय जवान जय किसान'* का नारा दिया. शास्त्री जी का ये नारा जवान एवं किसान के श्रम को दर्शाता है.
उपर्युक्त जानकारी से आप समझ ही गये होंगे कि देश में विशाल संकट के समय देवता सी छवि हमारे जवान और किसान भाईयो की निखर के आती है एेसे में उनकी जयकार करना व उन्हें प्रोत्साहन देना समझ से धनी व्यक्ति ही कर सकते है
जिस प्रकार नींव जितनी मजबूत होती है इमारत को उतना ही जीवनदान मिलता है ठीक उसी प्रकार यदि हमारे जवान और किसान स्वार्थी हो गए तो देश की गति शून्य मात्र रह जाएगी
ये लोग हमारे लिए निस्वार्थ भाव से कितना कुछ करते है
क्या कोई तोल सकता है इनके सतरंगी जज्बातों को ??
मेरे जवानो के लिए मेरी लिखी कुछ पंक्तिया ___
*विधा- वीर रस*
*विषय-कोई तोल नही सकता ,इन सतरंगी जज्बातो को*
वो माता कितनी गौरन्वित है
जो जन्म वीर सपूत दिए
भारत माता की मिट्टी में
चिराग उम्मीद के जगा दिए
शहीद हुए जो कुछ
भारत माता के बेटे कह ,
ह्रदय छलनी कर भुला दिए
उन बेटों की मैं,
आज कहानी गाती हूँ
आजादी की वो कुर्बानी गाती हूँ
शहीद हुए वो जो
बूढी़ माता के बेटे थे
क्या बीती होगी उस पर,
जिसके पूत अकेले थे
कुछ बहनों की
राखी खाक हुयी बिस्फ़ोटो में ,
बहने रो भी नहीं पायी
कर याद उन वादो को
मेरी शहीदी पर रोना नही
भाई की उन फरियादों को
वो अबला कैसे रोक
पायी होगी आँखो को ,
जिसकी मेंहदी रंग ना
दिखा पायी हाथों को
कोई तोल नही सकता
इन सतरंगी जज्बातो को
*गरिमा विनित भाटिया ,*
*अमरावती ,महाराष्ट्र*
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साथ ही किसान के विषय में कि मौसम के साथ उसकी कितनी भावनाएँ जुड़ी है
*एक किसान कबसे तरसा*
झम झम बरसे बरखा
एक किसान कबसे तरसा
दिखाए बदरा छवि निराली
जब बरसे छाए हरियाली
बून्द बून्द बरसे सावन
महक जाए घर आँगन
झूम जाए फ़सल प्यारी
मनभावन हो हर क्यारी
झम झम बरसे बरखा
एक किसान कबसे तरसा
*गरिमा विनित भाटिया*
*अमरावती महाराष्ट्र*
उपर्युक्त लेख मेरा स्वरचित है
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