कवि भास्कर सिंह माणिक कोंच जी द्वारा रचना “संस्कार"

मंच को नमन

         संस्कार
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ज्ञान भंडार होता संस्कार में
पहचान छुपी होती संस्कार में
जीवन होता समाहित संस्कार में

अपार शक्ति होती है
अद्वैतत भक्ति होती है
समाहित संस्कार में

सबसे करना प्यार
बनाना मजबूत आधार
अपनी संस्कृति सभ्यता
कर्म का पाठ
समाहित है संस्कार में

सच रखना
अपने देश का परिवेश
कभी मत करो द्वेष
समाहित है संस्कार में

पूर्वजों के वचन
ग्रंथों के उपदेश
बड़ों का मान सम्मान
मित्रों का नेह
समाहित है संस्कार में

देश का विकास
जीवन का प्रकाश
करना तम का ग्रास
समाहित है संस्कार में

बनाता है शत्रु को मित्र
रचता है उत्तम चरित्र
सत्य अहिंसा
समाहित है संस्कार में

जल संरक्षण करना
शुद्ध वातावरण बनाना
जीव जंतुओं से प्रेम
समाहित है संस्कार में

हर हाल में मुस्कुराना
खुद को सरल बनाना
परमार्थ का भाव
समाहित है संस्कार में

आकाश जैसा विस्तार
घरा जैसा धैर्य
बढ़ते रहना सरि सम अविरल
समाहित है संस्कार में

लक्ष्य पर नजर रखना
सही समय भेदन करना
लगन, निष्ठा ,विश्वास
समाहित है संस्कार में

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मैं घोषणा करता हूंँ कि यह रचना मौलिक स्वरचित है।
          भास्कर सिंह माणिक, कोंच

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