कवयित्री गीता पाण्डेय जी द्वारा रचना “"क" अक्षर की वर्णावृत्ति"

।। "क" अक्षर की वर्णावृत्ति ।।

कर्मों को अपने हम करते ही
 जायें ।
काम करके लक्ष्य हासिल कर
 पायें ।

किसी की नही करे हम कभी
 कोई निंदा ।
कुछ का चयन भी करें हम
 चुनिंदा  ।

कम से कम  एक कार्य करें
 रोज अच्छा । 
कर जिसको हम अपनी ही
 स्वेच्छा ।

कभी झूठ न बने कहे सब
 सच्चा ।
कह सके जिसको फिर हर
 बच्चा बच्चा ।

कथनी करनी में नही  करें
 अंतर ।
उन्नति होती रहेगी हरदम
 निरंतर ।

कर्मों की महक को इस कदर
 फैलायें ।
करनी से ही हम चंदन बन
 जायें ।

करे सदा हम अपनो का भी
 सम्मान ।
कभी नही करें किसी का हम
 अपमान ।

कब तक हम अपना न दिखाये
 प्रखर ।
कब तक हम रहेंगे दूसरों पर
 निर्भर ।

करें वीरता के कार्य बने
 स्वाभिमानी ।
कब से रास्ता देख रही झांसी
 की रानी ।

 काली दुर्गा रणचंडी तुम बन
 जावो ।
काश कि यह स्वभाव फिर से
 लावो ।

 कोयल कौवा में तो अंतर
 करना सीखो ।
कभी ना पड़ेगा जिंदगी का रंग
 फीको ।

 काली बदरी बन जगत में छा
 जावो ।
 काले कारनामे का अंत करो
 जहां भी पावो ।

 कठोरता भी कहीं कहीं पर तो
 अब दिखावो 
कुकर्मियों को संसार से अब
 तो मिटावो ।

कुछ कर्तव्य ऐसे अब तुम भी
 दिखलावो ।
काल कवलित  होने पर भी
 नाम कर जावो ।

 क्रंदन नहीं करो अब तो
 बिगुल बजावो ।
 कलयुग को गीता अपना राग
 सुनाओ ।

गीता पाण्डेय 
उपप्रधानाचार्या 
रायबरेली उ०प्र०

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