मंच को नमन
विषय : रिश्ता
विधा : कविता
कभी सन्नाटे सा ख़ामोश
कभी शोर मचाता ढ़ोल सा..
कभी कुसुमों का स्तवक
कभी खिलता बसंत सा..
कभी मासूमियत से भरी
कभी अनुरंजित हैं दम्भ सा..
कभी देता हैं अपनेपन का अहसास
कभी हिय की अक्षमता सा..
कभी रिश्ते देते हैं तपन
कभी तपती रेत में ठंढी बूँद सा..
हर रिश्ता बंदिशों से परे
जो नायाब तोहफ़ा हैं ख़ुदा का.. !!
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शालिनी कुमारी
शिक्षिका
मुज़फ़्फ़रपुर (बिहार )
(स्वरचित अप्रकाशित रचना )
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