शशिलता पाण्डेय जी द्वारा बावरे सा मन#

बावरे सा मन 
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बावरा मन का पंक्षी उड़ता,
नील गगन पर आवारा।
सपने देखे ऊँचे अम्बर के,
तोड़ विचारों का दायरा।
अपनी मनमर्जी में मगन,
कल्पनाओं के लगा पंख।
उड़ता रहता नील गगन,
मुक्त पवन सा बावरा मन।
घूमे हरदम बहारो के चमन,
कैद न होता पिजड़े में।
अभिलाषाओं के पंख लगा,
ढूंढे मंजिल रात और दिन।
सागर जल से बावरा मन,
नृत्य करे सागर लहरों सा।
देखो बावरे मन की बावरी बातें,
आवारा फागुनी बयारों सा।
कभी झूम-झूम गायें गीत,
सावन के मस्त फुहारों सा।
इत-उत डोले मन ही मन,
गायें  मधुर सपनो के संगीत।
बावरे से मन की बावरी है बातें,
देखो कैसे मन बावरी हवा संग।
खेले अठखेलियां सपनों में बीते,
  बावरे से मन की दिन और रातें।
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स्वरचित और मौलिक
सर्वधिकार सुरक्षित
कवयित्री:-शशिलता पाण्डेय

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