बाबूराम सिंह कवि जी द्वारा खूबसूरत रचना#

राजा-रंक सभी फल ढो़ते....
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मानव तन पाकर नहीं करना,
अवहेलना   सत्य - धर्म   की।
राजा- रंक  सभी  फल  ढो़ते,
अपने-   अपने    कर्म    की ।

सनातन  से  कर्म  प्रधान  है,
करना   है   सत्कर्म    सदा ।
मोक्ष,मुक्ति ,कैवल्य पद का,
सबल   यहीं  अर्मत्य  अदा ।
चुक  जाने  पर  नहीं   होगा ,
नर तन  की अहा  पुनः बदा।
समय  कम  है  सजग  बनो ,
कभी ना  करना यदा - कदा।

समझो महिमा अदभुत न्यारी,
मानवता    के     मर्म     की ।
राजा -रंक   सभी  फल  ढो़ते ,
 अपने - अपने    कर्म    की ।

परमार्थ ,परहित  के  पथ पर ,
चलना  ही  हित  कारक   है।
जीव ,जगत कल्याण  ही  तो,
भव  सागर   का   तारक   है।
अघ ,अवगुण,अधर्म  जग  में,
अहा !  हृदय    विदारक    है।
सकल सुख - शान्ति का यही,
तो सदा  समूल   जारक   है।

आत्मसात   कर   सत्य - धर्म,
 छोडो़    पथ    अधर्म     की।
राजा -रंक   सभी   फल  ढो़ते,
 अपने -  अपने     कर्म     की।

बद    कमाई    भुलकर    भी ,
कदापि        खाना        नहीं।
नेक  नियत   से   नेक  कमाई,
करने     में     शर्माना     नहीं।
अपने   धन , बल ,आदि   का ,
 भी     घमंड     लाना     नहीं।
निज कर्मो  का  फल  पाना  है,
कभी बुरे  कर्मो  में जाना नहीं।

छवि ना बिगडे़, बाबूराम कवि,
कभी   भी   मानव   धर्म   की।
राजा - रंक   सभी  फल   ढो़ते,
अपने     अपने     कर्म     की।

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बाबूराम सिंह कवि 
बड़का खुटहाँ , विजयीपुर
गोपालगंज(बिहार)
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