कवि नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर जी द्वारा रचना “राम विजय का पर्व दसहरा"

1-राम विजय का पर्व दसहरा

रावण जलते मरते युगों युगों से
हो चूका अब पस्त।।
युग से करता है प्रश्न?
राम ने भाई बिभीषन
कुलद्रोही  सह पर 
वध रावण का कर डाला।
रावण बध के बाद 
धर्म ,मर्म ,ज्ञानी  बिभीषण
लंका का राजा राम भक्त।।
रावण बध  युग में राम 
विजय उत्सव का पर्व।।

स्वयं राम भगवान् को
युद्ध भूमि में ना जाने
कितनी बार छकाया और थकाया।
कुटिल बिभीषण भाई का धोखा
 युद्ध भूमि में खेत रहा हुआ परास्त पस्त।।
ना जाने कितनी बार मेरे दस
शीश कटे , कटी बीस
भुजाये असय वेदना में भी
युद्ध भूमि ना त्यागा
युग जननी सीता हरण का
प्रतिवद्ध।।

मुझे राम ने मारा कुलद्वंसि 
वाण प्रहारों से 
राम स्वयं भगवान् कर् ना
सके मेरा उद्धार ।।।                         ना हो पाया भाव सागर
पार ,नाही जन्म मृत्यु बंधन से मुक्त।।
राम विजय की खुशियो के
युग में विजय पर्व दसहरा
दीपावली  गण, गणपति
लक्ष्मी आराधना धन बैभव जन भाव हुए तृप्त।।
रावण मरण राम अयोध्या लौटे   संस्कृति संस्कार स्वागत उल्लास
हर्षित हरषे जन जन के लोचन बृंद।।

रावण का मरना विजय राम की राम राज्य् आधार तमस पर सतगुण विजय संकल्प ।।
राम अयोधया वापस आये दुष्ट
दानव कुल कर नाश मर्यादा आदर्श उजियारा राम राज्य।।
रावण की इच्छा युगों युगों जन जन हृदय से मिट जाये अँधेरा हो उजियारा ।।                          


2-राम राज्य की दिवाली

दिए जलाओ
आशा ,अभिलाषा ,विश्वाश के
युग गरिमा ,गौरव ,मार्यादा की
खातिर रावण हुआ दानव कुल तन से मुक्त।।



रावण संग खर ,दूषण ,त्रिसरा, मरीचि ,अहिरावण ,कुम्भकरण
मेघनाथ एक लाख पूत सवा लाख
नाती राक्षस कुल का अंत।।
रावण पर राम विजय सतोगुण 
विजय का उत्साह ,उल्लास 
बुराई पर अच्छाई विजय का शुभ
मंगल का गान।।
 क्या राम पिता काआज्ञा पालन
वन गमन युग  उद्देश्य मात्र राक्षस कुल वध  ।।                      सद्गुण विजय तमोगुण का संघार युग सृष्टि दृष्टी  का आचरण व्यवहार ।।
क्या युग ने अपनाया मर्यादा का
भगवान् राम।।
 मुक्त नहीं हुआ रावण राम के मारे
भगवान राम आज भी भटक रहे
अपने मूल्यों मर्यादा आबतलाने समझाने ।।।                           

जिसके खातिर बन जंगल भटके पत्नी वियोग में मानव सा कलपित रोये ।।

रावण मरने जलने पर कहते
जय श्री राम
अच्छाई पर बुराई की विजय का भरता युग दम्भ।।
रावण जगत जननी जगदम्बा का
हरण किया अशोक बाटिका में
सिर्फ प्रणय निवेदन करता रहा
गया नही पास।।
सीता अवनि पुत्री रावण का कर ऋषियों का रक्त स्वयं रावण ने
बीज बोया अपना अंत।।
सीता  नौ दुर्गा अधिष्ठात्री 
नवदुर्गा अनुष्ठान का अंत रावण का दानव शरीर का त्याग अहंकार का अंत।।
विजय पर्व दसमी निर्धारित दस 
दस शीशो की हार राम राज्य दीपोत्सव का त्यौहार।।
क्या रावण संग मिट गई बुराई 
राम राज्य अच्छाई लाई
क्या सच हुआ  रावण 
का मरना जलना।।
सिर्फ रह गया प्रतीक रामायण
राम रावण का युद्ध राम की जीत
रह गया सिर्फ चर्चा और प्रसंग।।
कहते हो भगवान राम को
करते हो शर्मशार भगवान को।।
रावण मरने जलने का विजय
पर्व मनाते राम राज्य् की खुशियों
का दीप जलाते क्या हुआ उजाला
युग में हुआअसुरो का अंत।।
क्या आया राम राज्य् क्या अर्थ मतलब विजय पर्व राम राज्य् दीपोत्सव का जब रावण युग के
हर प्राणी में बसता करता छल छद्म प्रपंच।।

नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

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