कविता
एक झलक दिखला जा अपनी
------------------------------
नहीं देखी तेरी सुरत एक भी बार,
पर याद आती हो तुम बार बार,
कहीं भी जाता,सुनायी देती तेरी आवाज,
कहाँ हो सजन आ जाओ एकबार।
रहता हूँ वेचैन,तेरी आवाज सुनने को,
जबतक नहीं देखूँ ,दिल को नहीं चैन,
अब तो एक झलक दिखला जा अपनी,
आये मेरे इस नाजूक दिल को करार।
गूंजती तेरी चूडियों की आवाज हर बार,
तेरी खुशबू इन फिजाओं में महकती,
बढ़ रही मेरी बेचैनियाँ दिल की,
क्या इसी को कहते प्यार प्यार प्यार।
-----0----
0 टिप्पणियाँ