कवि अजीत कुमार जी द्वारा रचना (विषय-निरंतर तुम चलता जा)

निरंतर तुम चलता जा
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वक्त कम है काम बहुत है निरंतर तुम चलता जा...
तिनका-तिनका फतह कर के जीत शिखर पर चढ़ता जा।

निरंतर चलने से देखो, कछुआ बाज़ी मार गया,
निरंतर चलने से दशरथ, गिरि का सीना चीर गया।
निरंतरता ला जीवन में, नव इतिहास तूं गढ़ता जा...
तिनका-तिनका .................

अवसर कुछ ऐसे आयेंगे, चलने से तुमको रोकेंगे,
लोग भी कुछ ऐसे मिलेंगे, हर घड़ी तुमको टोकेंगे।
वक्त का पहिया सा मुसलसल, एक गति से ढलता जा...
तिनका-तिनका.................

चलने को जीवन कहते हैं, रूकना मौत समान  है,
मंजिल को जो पा लेते हैं, मिलता चारों धाम है।
एक-एक लम्हा को अपनाकर, जीवन पथ पर बढ़ता जा...
तिनका-तिनका.................

ऐसा जीवन में कर जाओ, जाने का न मलाल रहे,
अनुकरणीय पथ तेरा हो, जो भी चले खुशहाल रहे।
हर शत्रु से करो सामना, वीर जवान सा लड़ता जा...
तिनका-तिनका................

अजीत कुमार
गया, बिहार

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