*शीर्षक:-दशहरा*
ऋषि पुलस्त्य के नाती बिस्रुस्वा, केकसी के नन्दन।
शिव तांडव स्त्रोत रचयिता दस शीश वाला दशानन।
सोने की लंका की कल्पना न कर बना होता फकीर।
यदि अभिमान त्यागकर जिंदा रखा होता ज़मीर।
रामेश्वरम स्थापना के मंत्र उसी ने पढ़े वो ज्ञाता था।
धन वैभव की नहीं कमी वह कुबेर का ही भ्राता था।
रावण विद्वान अहंकारी और सर्व शक्तिमान था।
शंकर भक्त था पर सत्य से भटका हुआ इंसान था।
उदारता व्यवहार में मधुरता वचनों में अपनाये।
विश्व बंधुत्व की भावना से सबको गले लगाएँ।
रावण जलाने से पहले मन के विकारों का करो नाश।
तभी आपके हृदय में होगा प्रभु श्रीरामजी का वास।
अधर्म पर धर्म , असत्य पर सत्य की ही जीत होती है।
अहम,लोभ,स्वार्थ,त्यागने पर ही राम से मीत होती है।
कागज के पुतले को जला देने से केवल उठेगा धुँआ।
अनादि काल से लोग जला रहे हैं कहीं बदलाव हुआ?
दुराचारी व्यभिचारी जगह - जगह रावण बैठे हैं।
स्त्रियां नहीं सुरक्षित करने वाले अपहरण पैठे हैं।
याद करो रामायण की निःस्वार्थ प्रेम पूरित गाथाओं को।।
कलयुगी रावण भुला चुके हैं अब तो उन मर्यादाओं को।
झंझा और तूफानों से कभी भी नहीं हिम्मत हारना है।
रक्त बीज जैसे पैदा हो रहे दरिंदों को भी मारना है।
काम, क्रोध, मोह, लोभ,मत्सर मादा अहंकार।
स्वार्थ, अन्याय, क्रूरता ,दसों का करें तिरस्कार।।
जब तक हम इन सब का हनन नहीं करते हैं।
तब तक केवल औपचारिकता ही हम रटते हैं।
जिस दिन हर युवक अपना लेगा चरित्र रामलखन।
सुरक्षित होंगे सारे रिश्ते धन्य हो जाएगा ये वतन।
मुश्किलों से नहीं भागना यह तो जिंदगी का इम्तिहाँ है।
डरने से हासिल नहीं ताक़त से कदमों में सारा जहां है।
दृढ़ दृढ़ता से प्रण कर अपना स्वाभिमान बचाएंगे।
सीता ,सती ,अनुसुइया के आदर्शों को अपनाएंगे।
दिल में उम्मीदों की चाहत रखकर विजय पाएंगे।
आत्मविश्वास को बढ़ाकर ही जीवन को जगमगाएंगे।
बुराई का पर्याय करने वालों का नहीं चला है वंश।
दुर्योधन ,दुशासन ,कुम्भकर्ण ,रावण हो या कंस।
जब तक अन्तस् में राम के भाव नहीं उपजाओगे।
तब तक अहंकारी,प्रपंची,रावण नहीं मार पाओगे।
आओ गीता हम सब मिलकर ये प्रतिज्ञा करते हैं।
क्षमा शील स्नेह आशा निग्रह विवेक को भरते हैं।
गीता पांडेय (उपप्रधानाचार्य)
रायबरेली-उत्तरप्रदेश
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