२२/१०/२०२०
शीर्षक - कत्यायनी माँ
ब्रह्मा विष्णु ओ और सदा शिव सब मैं तेरी शक्ति माँ
कभी तू तब गौरी माँ कभी तू कमला मां कभी काली का रुप माँ !!
माँ तू ही बता कैसे तुझ को रिझाऊँ ।
कदम कदम पर खाई बड़ी भारी खाई ।.
दुखों ने घेरा है संताप का डेरा है
किस विधी चल कर आऊँ ।
तेरी मर्ज़ी से ही सब काज बने
तेरी मर्ज़ी से ही सबके भाग्य बने
ना ना प्रकार के खेल खिलाती माँ ।
तेरी महिमा कोई न जाने , चुटकी में काम बनाती माँ ।।
तू ही शक्ती तू ही भक्ती तू ही विघा तू बसी हर नारी में
माँ राम भी तू रावण भी तू ही युद्ध का चक्रव्युह रचाती ।।
कभी ज्वाला बन सागर उदर समाती ,कभी पूजा की पावन ज्योत बन प्रकाश फैलाती ।।
कालचक्र का पहिया तेरे हाथों में
जब जिधर देखे उधर नाच नचाती ।।
चली आती हो शक्ती बन नवरात्री में ,अंखड ज्योत जहां जलती , वहीं के सब पाप मिटाती ।
मनोकामना सबकी पूर्ण करती ।।तुम मस्तक का चंदन हो फूलों की बगिया हो ।
माँ तुम सब कुछ हो सारी दुनियाँ हो ।
माँ चांद जैसी शीतल मख़मल सी नर्म ।
माँ दुर्गा अवतर्णी माँ सबकी वैतरणी , माँ धर्म माँ कर्म ।।
सुख दुख के भंवर में फँसी जीवन नैया ।
कभी डूबती कभी उबरती कोई नहीं खैवेया ।।
भय समाया ह्दय में सुध बुध खोई
याद कर मैया तुम्हें बार बार फूट फूट कर रोई ।।
पाप पूण्य का चक्कर समझा दे मैया ।
धर्म कर्म का ज्ञान बताते मैया ।।
जीवन सफल बना दे मैया
कुछ शक्ती मुझ में भर दे मैया
डॉ अलका पाण्डेय मुम्बई
महाराष्ट्र
मौलिक रचना
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