कवयित्री स्वेता कुमारी जी द्वारा रचना “प्रेम”

प्रेम

माँ के हर फ़िक्र में है प्रेम,
पिता के हर डांट में है प्रेम,
दादी के साथ कि हुई हर झगड़े में है प्रेम,
दादा से बात मनवाने में है प्रेम,
हम है तो रिश्ते हैं, रिश्ते है तो है प्रेम।।


बहन के साथ बिताए हर पल में है प्रेम,
कपड़े और काम के लिए की हुई बहन से बहस में है प्रेम,
भाई के साथ कि हुई हर झगड़े में है प्रेम,
पर जब भी मुश्किल में फसे तो साथ देने वाले भाई से है प्रेम,
हम है तो रिश्ते हैं, रिश्ते हैं तो है प्रेम।।


सास को खुश करने के लिए की हुई हर प्रयास
 में है प्रेम,
ससुर की तकलीफ में साथ देना ही है प्रेम,
ननद से प्यार पाने की हर कोशिश में है प्रेम,
पति के लिए की हुई हर फिक्र और व्रत में है प्रेम,
हम हैं तो रिश्ते हैं, रिश्ते हैं  तो है प्रेम।।


माता, पिता हो या हो भाई बहन,
हर कोई मांगे आपसे हरदम प्रेम।
सास , ससुर हो या हो पति , ननद,
बगैर प्रेम के न हो कोई इनमे दम।
इसलिए हम कहे हर पल हर कदम,
हैम हैं तो रिश्ते हैं, रिश्ते हैं तो प्रेम है हरदम।।

स्वरचित रचना
स्वेता कुमारी
धुर्वा रांची।
झारखंड।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ