कैसा जंग राज#एकता कुमारी जी द्वारा बेहतरीन रचना#

देखो आया , फिर से ये कैसा जंगल राज ?
हर गली-चौराहे पर लुटती नारी की लाज।
आज फिर मानवता हो रही है शर्मसार,
पुरुष के पौरुष का धूमिल हुआ है सार।

नारी - नर दोनों पूरक हैं,ये हमने स्वीकार किया,
लेकिन,बतलाओ क्या नारी को  अधिकार दिया।

कोंपल को आने से पहले अंकुर को मरवाया जाता है,। 
बेटियों को पापी के हाथों जिंदा जलवाया जाता है। 

इतना सब कुछ हो कर भी कानून मांगता है सबूत,
ये कैसा उसूल ये कैसी समझ, जब घटना है मजबूत। 

तमाशा  देखा करती, मूकदर्शक ये खामी नर समाज, 
ये खोखली दीवारों में गुम हो जाती है नारी की आवाज। 

अधिकारी मीडिया सरकार देखा करती घनघोर तमाशा, 
ऐसा लगता है जैसे कोई देगा  इनको नोट - बताशा। 

देख कर ये चक्र-कुचक्र आत्मा कल्पने लग जाती है,
व्यथित हो कर कलम,यथार्थ और क्रांति लिख जाती है। 

होता आया सदियों से नारी- संग अत्याचार, 
अब नारी को उठानी होगी हाथों में तलवार। 

पाप कर्म दुष्टों के,हो जाते हैं जब सीमा पार। 
तब नारी प्रगट होती,ले दुर्गा चंडी का अवतार। 

कोई फूलन देवी तो कोई झाँसी की रानी बनती है,
ममता दया क्षमा की मूरत माता भवानी  बनती है।

कुल दीपक मान कर तुझे लहू से सींचा और कोख में पाला।
खुद भूखी रहकर दिया हमेशा अपने हिस्से का निवाला।

माता बहन भार्या भाभी बन कर हमने प्यार लुटाया।
लेकिन तुमने भोग समझ कर मुझको सदैव ठुकराया।

ओ! पुरुष तुम्हीं बताओ कैसे करूँ  तुमपर विश्वास, 
तुम करोगे मुझसे निश्चल प्यार में कैसे कर लूँ  ये आस।

तुमसे है यही हमारा आखिरी यक्ष सवाल, 
क्या बन पाओगे नारी की अस्मत की ढाल?
             ** एकता कुमारी **

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