ऐसा है क्या....
मुकम्मल होकर भी अधूरा ऐसा है क्या
बेअक़्ली सा माजरा पूरा ऐसा है क्या
कोई मेरे कूचे में मेहमान बनकर आया
मेरे लिए कोई खास हुजूरा ऐसा है क्या
कल तक तो चट्टान की सिल्लियां थीं
क्या हुआ रात बना चूरा ऐसा है क्या
मैं उसे देखकर भी अंजान बना रह गया
वो भी नहीं बोला मजबूरा ऐसा है क्या
जाने कैसे बेवजय निगाह मेरी झुकी थीं
कुछ सोचा या श्रद्धा-सबूरा ऐसा है क्या
देख ले "उड़ता"नज़ारा नूरा ऐसा है क्या
रात है पूरी मगर चाँद अधूरा ऐसा है क्या
स्वरचित मौलिक रचना
द्वारा - सुरेंद्र सैनी बवानीवाल "उड़ता"
झज्जर - 124103 (हरियाणा )
संपर्क +91-9466865227
udtasonu2003@gmail.com
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