कवयित्री नीलम डिमरी जी द्वारा रचना “सतरंगी"

सादर नमन मंच
दिवस --मंगलवार
विषय-- सतरंगी
विधा-- गीत

सतरंगी समां,
मन मचल जाए रे हां, 
 यादों का वह पिटारा, 
 बना जाए कारवां हो... 

बहुतेरे रंग इसके, 
प्यार द्वेष के ढंग जिसके।
भाषा है प्यार की, 
करें जब दोस्ती मिलके हम.... 

मिलन की खुशी इसमें, 
देती है सतरंगी एहसास, 
क्लेश का ना भाव हो, 
इंद्रधनुष सा हो आभास हां...

सतरंगी मन मेरा, 
गीत गाता जाए रे, 
अंखियों में सपने सजा के, 
मन मचल आ जाए रे हां...

  स्वरचित-- नीलम डिमरी
  गोपेश्वर ,,,चमोली
     उत्तराखंड

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