प्रकाश कुमार मधुबनी"चंदन" जी द्वारा विषय नारी सशक्तिकरण पर बेहतरीन रचना#

*मंच को नमन*

*स्वरचित रचना*
*नारी शक्ति*
(प्रतियोगिता के लिए)

नारी शक्ति के विषय में यदि बात की जाए तो सर्वप्रथम हमे यह समझना होगा कि यह सम्पूर्ण धरा पर चराचर को दो भागों में बाँटा गया है नर व नारी। अर्थात पुरुष व स्त्री।समस्त संसार में यदि ध्यान से देखे तो दोनों के सहयोग से ही पृथ्वी जीवंत है।मानव जीवन में जितना जरूरी पुरुष है उतना  ही जरूरी स्त्री भी है।फिर ऐसा क्यों है कि भारतीय समाज में नारी को शक्तिहीन अबला कहा जाता है आखिर यदि हम इसके कारण को समझने की कोशिश करे तो पाते है कि समाज में नारी की जो स्थिति है उसका जिम्मेदार एक महिला भी है। सर्वप्रथम जब महिला गर्भवती हो तो स्त्री ही कहती है बेटा हो भगवान करे।यू तो स्त्री को कमजोर कहना गलत है क्योंकि एक स्त्री यदि पढ़ी लिखी हो तो वह पूरे परिवार को शिक्षित कर सकती है।वक्त आने पर वह बच्चे की माँ के साथ पिता का प्यार भी देती है किंतु जो माँ ना हो तो पिता बच्चे का पालन नही कर पाता।फिर भी नारी को कमजोर है।यह भ्रम भी है क्योंकि आप गीता रामायण कुछ भी उठाकर देखो तो पता चलता है। कि बिन स्त्री के जीवन की कल्पना भी सम्भव नही है।आखिर क्यों।क्योंकि बिन स्त्री के ये सृस्टि का विकास तो दूर चलना भी सम्भव नही है।आज के समय में हालात में नारी शक्ति एक ऐसा विषय है जिसपर ना के बराबर बात होती है।नारी शक्ति नारी के अन्तःमन में होता है।यदि इतिहास के पन्ने को पलट करके देखे तो पाते है कि भारत में नारी को शक्ति,देवी माना जाता था देवी कहा जाता था किंतु आज नारी को एक बच्चे पैदा करने का वस्तु समझ कर उन्हें प्रताड़ित किया जाता रहा है। हिन्दू धर्म में अपनी स्त्री को छोड़ अन्य सभी महिलाओं को पूजनीय कहा गया है। आज का समाज सायद यह भूल गया है कि स्त्री भले प्रेम की देवी होती है किंतु वह वक्त पड़ने पर काली बनकर रक्तपात भी कर सकती है।नारी का जीवन जितना कष्टमय होता है सायद ही पुरुषों का हो।नारी को बचपन से ही घर का कामकाज करना सिखाया जाता है।लड़की मतलब जिम्मेदारी लज्जा समझा जाता है घर की इज्ज़त समझा जाता है।वर्तमान में स्थिती पर नजर डाले तो पाते है कि स्त्री की स्थिति बहुत दयनीय हो गई है।आज जो भी हो रहा है उसका कारण यदि गहराई से समझने की कोशिश करे तो सिनेमा जगत के उल्टे सीधे गाने फिल्में व फैशन भी उतना जिम्मेदार है जितना एक रेपिस्ट। आज हमें फिर सोचने की आवश्यकता है कि यदि हम अपने लड़की माँ बहनों को सशक्त बनाना चाहते है तो हम उनके पहनावे को भी ध्यान देना होगा।अपने बेटी के साथ बेटा को भी संस्कारवान बनाना होगा। कुछ लोगो का कहना है कि हम महिलाएं आजाद भारत की इक्कीसवीं सदी के है हमें हक है कि कौनसे कपड़े है कौनसे पहनावा अपनाए ये ठीक है माना किन्तु मैं ये कहना चाहता हूँ कि हीरा को सम्हालकर रखा जाता है ना कि खुले में नुमाइश किया जाता है।हमे समझना होगा कि अपने बहन बेटी को शिक्षित संस्कार व इतना आत्मसम्मान रखना सिखाए की वो हर परिस्थिति में बेझिझक मुकाबला कर सके। क्योकि महिलाओं का सम्मान राष्ट्र का सम्मान होता है। महिलाओं का आगे बढ़ना परिवार समाज विश्व का आगे बढ़ने का सूचक है। हमे इसके लिए परिवर्तन करना होगा।जो कि बहुत जरूरी भी है।चाहे अपनी कुरीतियों को समाज से। बाहर निकालने की या वापस भारतीय संस्कृति की ओर लौटने की। इसके लिए निम्न पंक्तियों पर बल देना होगा व जीवन में पूर्णजोर से आत्मसात करना होगा जिससे हमारा जीवन सुखमय होगा।

उठो महिलाओं जागों।
अब स्थिति से ना भागों।।

त्याग कर दिखावे की जीवन
 अब स्वयं की पहचान करो।
तुम सीता हो ना कि अबला
चलो अब स्वयं इंतजाम करो।।

फिरसे अग्नि परीक्षा हो
 या काँटो से भरा राह हो।
किन्तु तुम भयभीत ना होना।
कर सकते हो यदि तुममें चाह हो।।

तुम श्रृंगार में बनो माँ गौरी 
ताकत में बन शक्ति संचार करो।
तपस्या में बनकर बैष्णवी,
व काली बन दुर्गति का संघार करो।।

तुम जीवन दायनी जननी हो
तुममें सृजन की जो ताकत है। 
तुम विश्वास करके देखो स्वयं पे
सुव्यवस्थित करने की साहस है।।

बनकर के माँ सरस्वती
 ज्ञान की धारा बहाओ।
भक्तिमय प्रेम प्रभाव से
आनन्द करुणा बरसाओ।।

अब ना अपनाओ तुम
जरा भी पश्चिम सभ्यता को।
अपने अन्तः मन से तो 
सती अस्तित्व का ध्यान करो।।

तुम जो सोच लोगे वही हो जाओगे
अब ना स्वयं का तिरस्कार करो।
उठालो हाथो में फिरसे वेद पुराण
विश्व में भक्तिमय संस्कार भरो।।

अतः नारी को स्वयं जागना होगा तब कही जाकर ये देश समाज ये विश्व का विकास हो पायेगा व अन्य विकार दूर हो सकेगा।अन्यथा जिस तरह से समाज गलत दिशा में जा रहा है 
इस सृष्टि का पतन यथा सीघ्र हो जाएगा व पृथ्वी पर धर्म कर्म पूजा तप सभी का नाश हो जाएगा। अब नही तो कब यह समाज बदलेगा।अब समय आ गया जब फिरसे हम अपने बच्चों में अपने संस्कृति का सृजन करके नारी के सशक्तिकरण पर जोर दे जिससे समाज को पृर्ण रूप से विकसित किया जा सके अन्यथा सारा विकास धरा का धरा रह जाएगा।तब उसके जिम्मेदार हम ही होंगे। उस समय लाख पश्चात्ताप करने से भी कुछ नही होगा।हमे एक ओर दिशा में ध्यान देना होगा की कानून व न्याय प्रणाली को इतना मजबूत बनाया जाए कि कोई भी दानव किसी लड़की की जीवन को ताड़ ताड़ करने की हिम्मत ना कर सके।तब कही जाकर हमारी माँ बहन बेटी विकास के उन्नत पथ को छू सकेंगी। व नारी सशक्तिकरण का 
सपना साकार हो पायेगा।।

*प्रकाश कुमार मधुबनी"चंदन"*

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