कवि व लेखक रमेश चंद्र भाट जी द्वारा 'गांधी-अहिंसा-सत्य' विषय पर रचना

बदलाव साहित्य मंच (राष्ट्रीय अन्तर्राष्ट्रीय)
साप्ताहिक प्रतियोगिता के लिए लेख
दिनांक--04-10-2020

शीर्षक- गांधी - अहिंसा - सत्य

स्वरचित रचना
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      मोहनदास करमचंद गांधी जी का जन्म 2-अक्टूबर' 1869 को सुदामापुरी, पोरबंदर में दिवान करमचंद गांधी के घर हुआ। माता पुतलीबाई धार्मिक विचारों वाली ग्रहणी थी। मोहनदास का 13 साल की अल्पायु मे कस्तूरबा से विवाह हो गया।
     माँ ने मांसाहार, शराब, धुम्रपान व व्यभिचार न करने की शपथ दिलाकर इंग्लैंड जाकर पढने की अनुमति दी। वकालत की पढाई कर उन्होंने मुम्बई हाइकोर्ट में वकालत करी फिर राजकोट चले गये।
     पोरबंदर के अब्दुल करीम की दक्षिण अफ्रीका में स्थित मेमन फर्म का केस लड़ने दक्षिण अफ्रीका गए जहाँ उन्हें कई जगह रंगभेद का सामना करना पड़ा।  रेल्वे के प्रथम श्रेणी में टिकट लेकर यात्रा करने पर भी इन्हें प्रिटोरिया में धक्के मारकर डिब्बे से निकाल दिया। इस घटना का उनके जीवन पर गहरा असर पड़ा ओर उनके मन में अंग्रेजों के अत्याचार से आजाद होने का संकल्प आया।
     1896 में भारत आकर 1901 में कलकत्ता की महासभा मे शामिल होकर आजादी प्राप्त करना ही जीवन का मुख्य उद्देश्य बना लिया।
     1913-14 में गांधी जी को दक्षिण अफ्रीका में चला रहे आन्दोलन के लिए धन की आवश्यकता थी तब राष्ट्रभक्त आर्य सन्यासी स्वामी श्रद्धानंद जिन्होंने भारतिय संस्कृति के प्रसार के लिए हरिद्वार के पास गुरूकुल कांगडी कि स्थापना करी थी,    गुरूकुल के विद्यार्थियों के साथ मजदूरी कर 1500/- रू. इकट्ठा कर गांधी जी का सहयोग किया। भारत आने पर गांधी जी ने 6-अप्रैल' 1916 को गुरूकुल कांगडी आकर श्रद्धानंद (मुंशीराम) जी से भेंट कर आभार प्रकट किया। यहाँ गांधी जी को एक सम्मान पत्र दिया गया जिसमें पहली बार लिखित में गांधी जी को महात्मा की उपाधि से विभूषित किया गया।
     टर्की के बादशाह के समर्थन में खिलाफत आंदोलन करना शायद गांधी जी के जीवन की सबसे बड़ी गलती थी। जिन्ना भी खिलाफत यानी खलीफा के राज को गलत मानते थे ओर जनता का राज चाहते थे लेकिन गांधी जी मुसलमानों को अपने साथ जोड़े रखने के लिए खिलाफत को मुसलमानों की गाय बताते थे। कहते थे कि जैसे गाय हिन्दुओं के लिए पुज्य है वैसे ही खिलाफत मुसलमानों के लिए। एक खिलाफत सभा में गांधी जी के साथ श्रद्धानंद जी भी थे। उस सभा में मौलाना लोग बार बार हिंसा का आव्हान कर रहे थे तो श्रद्धानंद जी ने इस बारे में गांधी जी का ध्यान दिलाया तो गांधी जी ने कहा कि यह तो अंग्रेजों के विरूद्ध हिंसा की बात कर रहे हैं। तब श्रद्धानंद जी ने कहा कि यह तो आपके अहिंसा के सिद्धांत के विरूद्ध है ओर यह हिंसा हिन्दुओं के विरूद्ध भी जा सकती है। गांधी जी ने उनकी एक नहीं सुनी जिसका भयंकर परिणाम आया। मालाबार के मोपलाओं (मुस्लिम) ने हथियार इकट्ठा कर 20 अगस्त को पीरूनांगडी मे ब्रिटिश सेनिकों पर हमला कर स्वराज स्थापित होने की घोषणा कर अली मुदालियार की ताजपोशी कर खिलाफत (वर्तमान का ISISI नामक आतंकी संगठन) के झंडे लहराए। इसके बाद वहाँ के हिन्दू जो ज्यादातर गरीब किसान व दलित थे उनका कत्लेआम व स्त्रियों पर अमानवीय अत्याचार कर धर्मांतरण का दबाव बनाया। बीस हजार से ज्यादा लोग मारे गए ओर हजारों का जबरन धर्म परिवर्तन कर दिया गया। 
     जब यह बात गांधी जी को बताई गई तो उन्होंने कहा हिन्दू अपने व परिवार की रक्षा नहीं कर सकता तो इसमें गलती हिन्दुओं की है। श्रद्धानंद जी ने कहा कि आप अछुतोद्धार की बात करते हैं जबकि मोपला में उनपर घोर अत्याचार हो रहा है। तब तथाकथित राष्ट्रीय मुसलमानों ने कहा मोपला स्टेट दारूल अमान न रहकर दारुल हराब हो गया है इसलिए यहां रहने वालों को कुरान या तलवार मे से एक का चुनाव करवाना बहादुर मोपलाओं का धर्म है।
     कोड़ोनाडा कांग्रेस सम्मेलन में एक मुस्लिम नेता ने दलितों के उद्धार के लिए यह सुझाव दिया कि आठ करोड़ दलितों में से आधा आधा बांट लेते हैं। आधे हिन्दू रखले व आधे मुसलमान। गांधी जी ने जब इस बात का विरोध नहीं किया तो श्रद्धानंद जी व कई अन्य लोगों ने काग्रेंस छोड़ दी। 
    जबरन धर्म परिवर्तन के विरूद्ध मुहिम चलाकर आर्य समाज के समाजसेवी स्वामी श्रद्धानंद जी ने उत्तर प्रदेश के लाखों मलकाना राजपूतों की शुद्धि कर पुनः हिन्दू बनाया ओर धर्म व ईश्वर का सही ज्ञान देने वाली महर्षि दयानंद लिखित पुस्तक सत्यार्थ प्रकाश का प्रचार किया। कांग्रेस के मुस्लिम नेताओं के आपत्ति करने पर गांधी जी ने मुसलमानों को खुश करने के लिए सत्य का ज्ञान देने वाली पुस्तक सत्यार्थ प्रकाश व वेदों का ज्ञान फैलाने वाले आर्य समाज के विरूद्ध लिखना शुरू कर दिया। इससे कट्टरपंथियों को बल मिला ओर 23 दिसंबर' 1926 को एक  मतांध ने बिमार श्रद्धानंद जी की हत्या कर दी। गांधी जी ने श्रद्धानंद के पुत्र विद्यावाचस्पति को एक पत्र लिखा कि "अब्दुल भाई को माफ कर दो "। दो दिन बाद गुवाहाटी के काग्रेंस अधिवेशन मे शोक संदेश में कहा "मैंने अब्दुल रसीद को भाई कहा है ओर में उसे दोषी भी नहीं मानता। वास्तव में दोषी वह लोग हैं जो एक दूसरे के विरूद्ध धृणा का भाव पैदा करते हैं। हमें एक आदमी के कारण पूरे समुदाय को अपराधी नहीं मानना चाहिए, में अब्दुल रसीद की तरफ से वकालत करना चाहता हूं।" उन्होंने आतंकवादी की वकालत करी और उसे बचा लिया।
    आजादी की लड़ाई में आम आदमी भी हिस्सा ले सके इसके लिए उन्होंने हिन्दी को जनता की भाषा बनाने का निश्चय किया ओर हिन्दी पत्रिकाओं को बढावा दिया। उनका मानना था कि देश में ऐसी भाषा की जरुरत है जिसे सबसे ज्यादा लोग जानते हों ओर बाकी बचे लोग ऐसी भाषा को जल्दी से सीख सकें। 1925 में कानपुर की बैठक में सिद्धांततः हिन्दी को राष्ट्र भाषा बताया। उन्हें दुख था कि महासभा के ज्यादातर लोग इस बात पर अमल नहीं कर रहें हैं।
     1930 में सरकार द्वारा नमक पर कर लगाने के सरकारी कानून के विरूद्ध दांडी से समुद्र तट तक एतिहासिक दांडी मार्च निकाला व लगातार नमक सत्याग्रह किया परिणाम स्वरूप गांधी-इरविन समझोते से इस कानून को खत्म करवा दिया। इसी से सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत हुई।
     जैसा की अब तक हमने देखा गांधी जी समृद्ध होते हुए भी देश की गरीबी देखते हुए सिर्फ एक लंगोटी पहनकर कठोर अनुशासन के साथ रहते थे और ऐसा सभी से चाहते थे। उनके अपने ही अहिंसा व सत्य के सिद्धांत थे। उनके चार पुत्र थे- हरिलाल, मणिलाल, रामदास व देवदास। बड़े बेटे हरिलाल ने अपनी मां का कठोर जीवन देखकर व स्वयं के इंग्लैंड जाकर वकालत पढने की बात न मानने व कई अन्य कारणों से रूष्ट होकर मई-1936 में ईस्लाम अपना कर अपना नाम अब्दुल्ला गांधी रख लिया। इस बात से बापू को कोई दुख नहीं हुआ क्योंकि उनका मानना था कि सभी धर्म सम्माननीय हैं और हमें उनका आदर करना चाहिए। बाद में अपनी मां के समझाने पर आर्य समाज के माध्यम से वापस हिन्दू धर्म अपना कर नया नाम हिरलाल अपनाया।
     गांधी जी अस्पृश्यता के कलंक को मिटाकर सभी को समान अधिकार दिलाना चाहते थे। अंग्रेजों ने हमेशा हिन्दू, मुसलमान व दलितों में फूट डालकर अलगाव पैदा करने का प्रयास किया। गांधी जी सभी को साथ रखना चाहते थे इसके लिए उन्हें तुष्टिकरण भी करना पड़ा।
     गांधी जी ने चरखा चला कर खादी के द्वारा स्वावलम्बन व पंचायती राज को मजबूत कर ग्रामीण विकास पर जोर दिया।
     गांधी जी देश का बटवारा नहीं चाहते थे। लेकिन कट्टरपंथी साथ रहने को तैयार नहीं थे। लार्ड माउंटबेटन ने काग्रेसी नेताओं को भी दो देश बनाने पर राजी कर लिया। गांधी जी को यह बात बाद में पता चली। इसलिये वह आजादी के किसी भी जश्न में शामिल नहीं हुए। वे बंगाल में दंगों को रोकने का प्रयास करते रहे। वो वहां से पंजाब भी जाना चाहते थे। इसके लिए वो कलकत्ता से दिल्ली आए। दिल्ली में दंगों से हालत गंभीर थी इसलिए वो दिल्ली में ही रुक गए। दोनों धर्म के नेताओं से बात करी ओर अनशन किया। उनकी पंजाब(पाकिस्तान) जाने की इच्छा पुरी होने से पहले  उनकी हत्या हो गई।
     ब्रिटिश साम्राज्य से आजाद होने के प्रयास में विशाल जनसमुदाय को एकत्रित कर जनआंदोलन करने के लिए स्वयं को एक कठोर अनुशासन में रखने वाले महापुरुष के रूप में सदा याद किया जाता रहेगा।

नाम-रमेश चंद्र भाट,
पता-टाईप-4/61-सी,
रावतभाटा, चितौड़गढ़,(राज.)

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