कवयित्री स्वेता कुमारी जी द्वारा 'माँ' विषय पर रचना

माँ

माँ होती है देवी की मूरत,
माँ होती है ममता की सूरत।
माँ के होने से घर होता है प्यारा,
माँ होती है दिल की ऐनक।।

माँ  के आशीर्वाद होते हैं प्यारे,
माँ के हाथ के पके खाने होते हैं निराले।
माँ की बोली होती है थोड़ी नूखिले,
पर करती है वो प्यार दुनिया से अनूठे।।

हमारी परेशानी पर होती है वो परेशान,
हमारी खुशियों पर रखती है वो मिर्ची नींबु की ढाल।
माँ की ममता है होती है दया की  चादर,
शक्ति देती हमको बन कर अमृत का गागर।।

माँ का हर रूप होता है सलोना,
हमें हँसाने के लिए वो बनती है खिलौना।
हर सख्ती करती है वो बर्दाश्त,
ताकि हम सब बने रहें  सुंदर सलोना।।

हमने देखी है हर रिश्तों में मिलावट,
हमने सुना है होती है कच्चे रंगों की मिलावट।
पर हमने न कभी देखी माँ तेरी आँखों में थकावट,
ना सुना है माँ है तेरी परवरिश में मिलावट।।

स्वरचित रचना
स्वेता कुमारी
धुर्वा, रांची,
झारखंड।।

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