मातृशक्ति
अब शक्ति स्वरूपा बनना होगा
महिषासुरों का वध करना होगा
जो अट्टहास करते नारी बलि
पर
जिनके आते नहीं अश्रु नयन पर
रोष नहीं है भौंहों पर
विषाद नहीं है वाणी पर
आह नहीं है अंतर्मन पर
कुछ भी शोक नहीं है मन पर
वे सब गीदड़ हैं बसुधा पर
उनको दुर्गा बन सबक सिखाना होगा
याद मां का दूध दिलाना होगा
दानवों को देव बनाना होगा
संस्कार चरित्र जगाना होगा
जय भवानी
जय भारत
चंन्द्र प्रकाश गुप्त "चंन्द्र"
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