एम.'मीमांसा जी द्वारा बेहतरीन रचना#

इश्क
इश्क़  का  रंग  सबसे   छिपाते  नही
दाग उसका किसी को  दिखाते नही

दर्द  ही  दर्द  क्यूँ  ना  मिले  इश्क़  में
हाल  दिल  का सभी  से  बताते नही
वो भले ना करे  अब वफ़ा कुछ मगर
बेवफा   यार   कहकर   बुलाते   नही
छाप जिसकी पड़ी  हो नज़र में कहीं
यार    तस्वीर   उसकी   हटाते   नही
नींद   तेरी   भले   खो  गयी  है  कहीं
रात भर तो  किसी  को  जगाते  नही
दूर  होकर  ज़रा  सा  न  भूलो  कभी
वस्ल  की  रात  को  यूँ   भुलाते  नही
क्या सही और क्या है गलत जान लो
उँगुलियाँ  यूँ  किसी  पर  उठाते नही
जख्म किसने  दिया  बात ये जानकर
पूछते   हैं   कि   वो   मुस्कुराते   नही
खूब   हँसते   रहो  तुम   हँसाते  रहो
यूँ ही  रोकर किसी  को  रुलाते  नही
हैं  समझदार जो  इस जहाँ  में  कहीं
इश्क़  का  ज़ोर  वो  आजमाते  नही

           *एम.'मीमांसा'*

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