जय मांँ महागौरी
बीच भंँवर में नाव पड़ी है
कैसे तुम उतरा देती हो?
निज किरपा को तुम ही जानो
कब मुझपर बरसा देती हो?
दावानल में मैं घिर जाऊंँ
तेरी ठंढी छांँव मिले,
तूफानों से नैया डोले
धीरे -से किनारा मिले
लुका - छुपी वाले खेलों से
माता मैं घबरा जाती हूंँ,
मन काँपता लब थरथराते
चरणों में मैं गिर जाती हूंँ।
कौन बिगाड़े उसके काम
जिसके रखवाले हैं राम,
तेरे ही सभी बच्चे मांँ
चरणों में दे दो विश्राम।
दुनिया की छल-कपटों से मैं
आहत होती जाती हूंँ,
कितने भाले और चुभेंगे
क्षत-विक्षत हो जाती हूंँ।
आज समा लो खुद में माता
देरी-दूरी ठीक नहीं,
कुकृत्यों से मुझे उबारो
जीवन चाहूंँ और नहीं।
मीनू मीनल
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