11/10/2020
रविवार
अतंर्राष्ट्रीय बेटी दिवस पर
ममता भरी मांँ की अवाज
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दुनिया के जल्लादों से,तुझे बिटिया बचा न सके।
ममता को अपनी,तेरी राहो मे हम बिछा न सके।।
गुलशन के बहार मे,पतझड़ आने रोक न सके।
ये जख्म ऐसा है कि,किसी को दिखा भी न सके।।
मुद्दतो का गम ये है,बिटियाआज जान न ले ले।
कोशिश करके भी,ये बिटिया भूला हम न सके।।
वीरंगना थी अंत तक लड़ी,बिटिया बचा न सके।
चीखी,चिल्लाई,रोई,होगी,बिटिया सुरक्षा दे न सके।।
मातम का आलम,अब समाचार की सुर्खियां रहा।
हवस के दरिंदों की करतूतों से,अस्तित्व बचा सकें।।
कैसा करें,कैसे बेटियों को पढ़ाये,और कैसे बचाये।
नंपुसक समाज,कमजोर कानून, कुछ कर न सके।।
खुद को मानव कहने वाले, दानव ये मक्कार रहे।
"योगिता"की कलम रोती,रुक रुक जो लिख सके।।
स्वरचित/मौलिक
अप्रकाशित..
योगिता चौरसिया
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