विषय: गाँधी जी, अहिंसा और प्रेम
विधा:कविता
शीर्षक: 'तभी होते हो तुम अपने गाँधी जी'
तुम सभी में छिपे
एक गाँधी जी
कभी होते हो तुम
अपने गाँधी जी
सत्य जब तुम बोलो
विचार अपने तोलो
तभी होते हो तुम
अपने गाँधी जी
अहिंसा जब अपनाओ
सदाचार का पाठ पढ़ाओ
तभी होते हो तुम
अपने गाँधी जी
प्रेम से सबसे बोलो
मानवता को जी लो
तभी होते हो तुम
अपने गाँधी जी
देश में स्वदेशी का नारा
जब जब तुम लगे प्यारा
तभी होते हो तुम
अपने गाँधी जी
भारत की सारी भूमि को
जब एक गाँव समझो
तभी होते हो तुम
अपने गाँधी जी
तुम सभी में छिपे
एक गाँधी जी
कभी होते हो तुम
अपने गाँधी जी
डॉ. लता (हिंदी शिक्षिका),
नई दिल्ली
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