दिनांक - २५/१०/२०२०
दिन - रविवार
विषय - दशहरा
विधा - कविता
खुशियों का पर्व आया दशहरा ,
सत्य-विजय के गीत गाए वसुंधरा ।
जय-विजय के गान से है गुँजित ,
सबके तन-मन आज हैं हर्षित ।
बढ़ जाता पाप जब धरती पर ,
संकट मँडराता ऋषि-मानव पर ।
तब देवी-देवता धरते अवतार ,
प्रभु करते सबकी नैयापार ।
महिषासुर का पाप था चारों ओर,
फैला था त्राहि-त्राहि का शोर ।
माँ दुर्गा-शक्ति ने लिया अवतार ,
खेला संग्राम दस दिनों लगातार ।
महिषासुर का कर दिया नाश,
पृथ्वी पर छाया हर्षोल्लास ।
हुई पुष्प-वृष्टि दिव्य-शक्ति पर,
मनाते तब से हैं दशहरा हर घर ।
जब पाप बढ़ा असुर रावण का ,
काँपते थे प्राण देव-मानव के ,
अधर्म ,पाप जब-जब बढ़ा मग में ,
धर्म-रक्षा काज राम आये थे जग में ।
राम-रावण के दस दिन के युद्ध में,
जीत थी असत्य पर सत्य आयुध में ।
सत्य आगे असत्य नहीं टिकेगा ,
जग में कभी सत् धर्म नहीं मिटेगा ।
आज जलाते पुतला रावण का ,
नाश नही करते भीतरी रावण का ।
हम जीवित रावण को नहीं मिटा पायेंगे ,
तब तक पाप- दूराचार नहीं मिटा पायेंगे ।
हम सब भीतरी महिषासुर को मारे,
दुर्गा पूजा को हम सार्थक करें ।
हम बोये बीज मंगल विचार के ,
फिर फल लगे कैसे दूराचार के ?
डॉ भावना एन सावलिया
राजकोट गुजरात
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