मंच को नमन
दो मुक्तक समीक्षार्थ प्रस्तुत
मैं संबंध बखूबी निभाना जानता हूं ।
मैं बिखरे मोती संजोना जानता हूं ।
जहां में कोई क्या बिगाड़ेगा मेरा ।
मैं तीन अंजलि में सिंधु पीना जानता हूं।
सीमा पर जवान खेत पर किसान।
ये दोनों रखते माटी का मान।
करो आरती इनकी गाओ गान।
मातृभूमि हित करते जीवनदान।
---------
मैं घोषणा करता हूंँ कि यह मुक्तक मौलिक स्वरचित हैं।
भास्कर सिंह माणिक, कोंच
0 टिप्पणियाँ