कवयित्री शशिलता पाण्डेय जी द्वारा रचना “आत्म निर्भर भारत"

आत्म निर्भर भारत
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अपना भारत देश महान,
जहाँ मिलती थी सोने की खान।
आत्म निर्भरता और आत्मसम्मान,
वहाँ नही कभी होगा देश गुलाम।
भारत अपनाए स्वनिर्मित समान,
कहलाता था भारत सोने की चिड़िया।
हस्तशिल्प, कारीगरी का नमूना बढ़िया,
खोली अंग्रेजो ने कंपनी ईस्ट इंडिया।
आत्मनिर्भरता भूले भारतवासी ,
विदेशी की नकल में भूल गए देशी।
 लोभ लालच का उठाया फायदा,
अंग्रेजो ने सारे देश को गुलाम बनाया।
 ईस्ट इंडिया कम्पनी को दिया विस्तार,
भारत को बनाया अपना बाजार।
 हम बने विदेशी समानों के गुलाम,
वर्षो तक झेला  गुलामी अत्याचार।
जबतक हम दूसरों के मोहताज रहेंगे,
कभी नही हम अपने को आजाद कहेंगे।
हम अपना अपनाएंगे स्वरोजगार ,
चाहे सूती वस्त्रों का हो व्यापार।
 भारत मे निर्मित स्वनिर्मित कृषि औजार,
उन्नत खेती से होंगे उन्नत बीज।
देश मे बढेगा अन्नभंडार,
नही होंगे आयात और निर्यात।
हमारा भारत नही करेगा विदेशों से व्यापार,
उत्तम कपास की होगी खेती।
विस्तृत होगा सूती हस्तकरधा वस्त्र बाजार,
जबतक शिक्षित कृषक नही बनेंगे।
तबतक भारत नही होगा आत्मनिर्भर,
अपने देश मे अच्छे कृषि वैज्ञानिक।
भारत की आत्मनिर्भरता का आधार,
अपनी कला और शिल्प को करे विस्तृत।
अपना लघु-उद्धोग और स्वरोजगार,
आओ हमसब बनाये भारत को महान।
देकर अपना योगदान भारत बने आत्मनिर्भर,
बढ़ाये अपनी शक्ति करे श्रमदान।
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स्वरचित और मौलिक
सर्वधिकार सुरक्षित
कवयित्री:-शशिलता पाण्डेय

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