कवयित्री सीमा गर्ग मंजरी जी द्वारा रचना “अगले जन्म मोहे बिटिया ना कीजो"

काव्य सृजन ...

अगले जन्म मोहे बिटिया ना कीजो.. 

घूँट-घूँट जीवन में अति गरल पिया है, 
काटों का ताज पहन ना गिला किया! 
बेटी का जन्म लेकर  क्यूँ   सुख  नहीं, 
सृष्टि की संचारी हूँ बस अब और नहीं!

मै बाबुल के अँगना की हसीं रौनक हूँ,
माता के आँचल की पावन दुआएँ   हूँ !
दो कुल का गौरव हासिल  जिंदगी  में, 
सुख की छाँव रख टालूँ अला  बलायें! 

ढोंगी समाज खुलकर करता है व्यापार,
चहुँओर बलात्कार अनाचार पापाचार। 
राह मेंं अकेले चलना बहुत है  मुश्किल,
नोच खाते भेड़िये करें हत्या बलात्कार!

शर्म संकोच त्याग की मैं तो रम्य मूरत,
ममता प्रेम धैर्य संयम की मृदुल  सूरत!
सरेआम इज्जत लूटते अब इज्जतदार,
पत्थर दिल जग बेशर्म बेगैरत बदकार!

तन नोच नोचकर खाते जुल्मी भेड़िये,
पैसों के बल गोश्त का अन्धा व्यापार!
संवेदनाओं का कत्ल  हुआ  खुलेआम, 
मंदिर मस्जिद में आबरू लुटती बेदाम!

पशुत्व भरा है आज पुरूषत्व के अन्दर,
बाला वृद्धा की उमर में नही करें अन्तर!
हवस की आग बुझाते मारते नर पिशाच,
मौत   नग्नता  का  नंगा  नाच  खेलकर !

हाथरस  इंदौर  बिजनौर हो  या  सूरत, 
सारे देश में  चली  नफरत की  कहानी!
बेटी के हत्यारे  जालिम  सौदागर दरिंदे,
अमोल आबरु  की  कीमत क्या जानेंगे।

लहूलुहान बेटी के होशोहवास गुम हैं
जान लेते निर्वस्त्र करते नहीं लाज  है, 
सरेआम फाँसी लटकाओ ये इलाज है !
बलात्कारी  सीने  पर यहीं वज्रपात हैं,

पिशाची दानवता  का लगाते डेरा है, 
बेटी की खुशियों में छल का  घेरा है !
चक्रव्यूह रचकर   मानव  जीवन   में ,
जमीर मरा अपराधी  हत्यारे  तेरा  है !

बेटी की किस्मत में नफरत के  जाले,
गोश्त के दरिंदे अपराधी के मुँह काले !
हृदय दर्पण टूटा किरचियॉ  बिखरी हैं,
 प्रभु तेरी बेटी की  किस्मत उजड़ी  है !

बस अब तो इतनी सी कृपा  कर  दीजो ,
प्रभु अगले जन्म मोहे बिटिया न कीजो!!

 सीमा गर्ग मंजरी
 मेरी स्वरचित रचना
 मेरठ

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