नमन मंच
बदलाव मंच पर आयोजित साप्ताहिक प्रतियोगिता हेतु
कविता का शीर्षक-हृदयानुरागिनी
कविता का उद्देश्य- स्त्री अस्मिता व स्त्रीत्व बोध
स्त्री क्या तुम केवल श्रद्धा हो?
आदिम बीजवपन की सुलगती हवा में ली जिसमें श्वास।
जो सृष्टि के प्रथम सोपान से आधुनिक अविरल विकास महान संघर्षों का उच्छवास।।
राजा ने कहा 'जहर पियो'
तू मीरा हो गई।
ऋषि ने कहा, 'पत्थर बनो' तू अहिल्या हो गई।
प्रभु ने कहा,' निकल जाओ' तू सीता हो गई।
पति ने कहा 'लग जा दाँव पर' तू पांचाली हो गई।
प्रेमी ने कहा 'भूल जा' तू शकुंतला हो गई।
चिता से निकली चीख, किसी कान ने नहीं सुनी, तू सती हो गई।
इतना गरल पीकर भी तू कितनी सरल हो गई।
नारी तुम केवल श्रद्धा हो?
दुर्गा, काली बन अभय रिपुदमन किया।
गार्गी, मैत्रेयी बन विद्वत्ताघन दिया।
शक्ति व ज्ञान का अजस्र स्रोत,जिसमें समाया ब्रह्मांड तत्व सारा।
जीवन का आरंभ,अंत व सूत्रधार प्यारा।
नारी क्या तुम केवल श्रद्धा हो?
कोमलता में भी कठोरता, कठोरता में भी कोमलता।
मोह भरी शीतल छाया,सदैव प्रेमसिक्त साया।
कठपुतली नहीं,किसी खेल की न कोमल छाया,
स्वतंत्र मंचन कर दुनिया के इस कठिन पर पंचम लहराया।
नारी क्या तुम केवल श्रद्धा हो?
करुणा सिंधु को धार बना,तूने लहरों -सी हुंकार भरी।
आत्मचेतना को साथी बना हर मंजिल तूने फ़तह करी।
तू मुक्त छंद-सी जीवन-कानन में विचरती।
सदा शक्ति व करुणा का अजस्र अर्क बिखराती..
हृदयानुरागिनी......हृदयानुरागिनी......।।।।
अंजनी शर्मा 'अमृता', गुरुग्राम, हरियाणा द्वारा स्वरचित काव्य रचना
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