कहीं धूप कहीं छाँव
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कहींधूप कहीं छाँव है सृष्टिका सार सदा ,
सुकर्म- विकर्म से मिलत ठांव -ठांव है ।
कर्म विकट परिक्षा पास कर जागृत हो,
भूल से भी कदापि नहीं जाना कुठांव है।
करो सत्कर्म धर्म मर्म लेई मानवता का,
यही तो जीवन में लाता बदलाव है।
लोभ मोह साँच झूठ एकमें मिल जाने से ,
जागो जीवन में कहीं धूप कहीं छाँव है।
तीन पाप तनका है चोरी हिंसा व्यभिचार ,
यही जीवन में लाता दुख भटकाव है ।
अनावश्यक झूठ कटु,निन्दावाणी का पाप,
शान्ति सुख सब कर देता बिखराव है ।
पर व्देष ,पर द्रोह, पर वस्तु कामना ही,
मन का है पाप सदा करता दुराव है।
गुण पूज्य दुनियां में रह सदगुण संग,
ढंग बिगडा तो कहीं धूप कहीं छाँव है।
मृदु मुस्कान वचन सुख देत सबही को ,
भरता आलोक जन -मन सदभाव है।
राग, अनुराग सुचि वैराग्य बढा़ता सदा ,
नेकी ,भलाई दृढ़ सत्यता शुभ चाव है ।
मानव का मूल लक्ष्य प्रभु प्राप्ति ही सदा ,
भक्ति ,सेवा ,सत्य से जो रखता लगाव है।
कर्म प्रभाव से ही मानव जीवन में सदा ,
"कवि बाबूराम "कहीं धूप कहीं छाँव है ।
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बाबूराम सिंह कवि
बड़का खुटहाँ , विजयीपुर
गोपालगंज (बिहार)८४१५०८
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