कवि बाबू राम सिंह जी द्वारा रचना “गीत"

🔥 गीत  🔥
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विष भी  पीना  पडे़ पी  जाइए चुपचाप  ही ,
कर प्रवाहित काव्यधारा प्राण नव भरते रहो ।

सृष्टि हो आनन्द की  सुख वृष्टि भी आनन्दमय ,
करते  रहो  झरते   रहो  आश  से विश्वास  से ।
विश्व  के  चलचित्र  पटपर चित्र मनहर ही बने,
कीजिए  ऐसा यतन भी  सिखीए इतिहास  से ।
प्यार  को  ही  प्यार  से ही  ले सहारा प्यार  का -
पुष्पसा खिलकर हृदयमें निज महक भरतेरहो।

तरुवरों  के  झुरमुटों  से हो  तिमिर छँटता  हुआ,
भोरके शुचिस्वाति-कणसा आचमन हो हरशुबह
 
हो  सुरीला  राग भी कोयल चहकती  शाखा  पर,
रश्मियों से पुष्प खिल सुरभित पवन हो हर शुबह।
हों वेद  की पावन ऋचाएँ  कण्ठ हो हर  शंख  सा,
राष्टृ  की भी  अर्चना  को  गीत  नव  रचते  रहो ।

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बाबूराम सिंह कवि
बड़का खुटहाँ , विजयीपुर 
गोपालगंज(बिहार)८४१५०८
मो०नं० - ९५७२१०५०३२
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