हिंदी कविता
खाने की मेज़ पर आज एक
लंबी छरहरी हरी मिर्च
अदा से कमर टेढ़ी किए
चेहरे पर मासूमियत लिए
देर से झाँक रही
मानो कह रही है
सलोनी सुकुमार हूँ
जायका दे जाऊंगी
आजमा कर देखिए
सदा याद आऊंगी
प्यार से उठाई
उंगलियों से सहलाई
ओठो से लगाई
ज़रा सी चुटकी खाई
अरे वह तो मुँहजली निकली
डंक मार कर
सारा मुँह जला गई
आँसू बहा गई
नानी याद आ गई
मुँह में आग भर गई
मज़ा किरकिरा कर गई
अपनी औकात तो जाहिर ही की
नज़र किए वायदे से भी
मुकर गई
पूछता रहा हूँ बंधुवर
कहाँ से पड़ गई नज़र
सोचा समझा सारा
प्लान फ्लॉप हो गया ।
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