कवयित्री नेहा जैन जी द्वारा 'सरकारें' विषय पर रचना

सरकारें आती हैं जाती है
पर कोई सुदर्शन चक्र क्यों नही बनाती हैं
आपस में लड़ती और लोकतंत्र पर राजनीति करती हैं
क्यों सेल्फ डिफेंस के प्रशिक्षण नही चलाती हैं
डर जाए वो हर नजऱ जो औरत पर उठती है
अपनी अपनी रोटी सैके सब
घर किसी मासूम का जलता है
मरती है किसी की लड़की
अपनी तो सुरक्षित
है
यही धारणा सबके मन मे बसती है
कभी निर्भया, कभी प्रियंका, कभी आशिफ़ा के नाम पर कैंडल मार्च निकलती है
फिर कुछ दिन बाद चुनावी खिचड़ी पकती है
जाँच पर जाँच चलती है
पीड़िता के घर की घेराबंदी होतीहै
पुलिस लगी है चारों ओर
लोकतंत्र का चौथा स्तंभ प्रेस कहलातीं है
वही गाँधी जयंती पर अपने अधिकारों की गुहार लगाती है
आदेश ऊपर से है पर
कितने ऊपर से ये समझ न आता है 
बेटी से अपनी जब छेड़छाड़ का विरोध पिता करता है तो सिर पर गोली खाता है
सारे भारत का हाल यही है
मज़हब पर न जाओ किसी के
अपराधी का न कोई धर्म ईमान होता है
वो इंसान नही भेड़िया होता है
क्यों अपराध तय करने में वक्त इतना लग जाता है
कि कानून की किताबों में धाराओं
का इंतजार करते करते इंसाफ 
सिसकता रह जाता है
अरे नया कोई कानून बनाओ
न खेले कोई विकृत मानसिकता का खेल
डर लगता है बेटी पैदा होने से
कैसे इसको बचाएंगे
लड़की होने की सजा ही लड़की पाती है
तो फिर क्यो दुर्गा पूजी जाती है
घूंघट भी बहुत डाले, लक्ष्मण रेखा भी न पार की
फिर क्यो चीर हरण हुआ
चिता जलती बेटी की 
न माँ बाप को खबर होती है
मेडल वाले अधिकारी 
हँसी ठिठोली करते हैं
क्या यही है शिक्षा जो
आमानवीयता सिखाती है
बनकर अधिकारी क्यो संवेदनहीन   हो जाते हो
 कैसे खुद से नजरें मिलाते हो
क्या दोष दू,तुमको तुम तो आदेश बजाते हो
क्या होगा शहरों का नाम बदलने से
जब भारत का नाम डूब गया
शर्म करो नित आबरू लूटती है
तुम मंदिर मस्जिद के नाम पर
लोगो को उलझाते हो
अरे बनकर राजा प्रजा का पालन करना होगा
यही धर्म है इसपर तुमको चलना होगा
नही तो दिन अब वो दूर नही
अपना इंसाफ आप करेंगे
खुद को खुद महफूज रखेंगें
जागो अब चिरनिद्रा से
इधर उधर की छोड़ो तुम
भारत के नेता बनकर 
भारत से नाता जोड़ो तुम।।

-नेहा जैन

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