कवि सुरेंद्र सैनी बवानीवाल "उड़ता" जी द्वारा रचना (विषय-खबर बनती हैं)

ख़बर बनती है.. 

तेरे हँसने की भी ख़बर बनती है
दिले बसने की भी ख़बर बनती है

मैं तो फिर भी मशगूल हो जाता हूँ
बात बनने की भी ख़बर बनती है

नज़र-नज़र का ही तो खेल है बस
निगाह मिलने की भी ख़बर बनती है

संग बह जाता हूँ मोहब्बते-दरिया में
साथ चलने की भी ख़बर बनती है

जाने क्या छूट गया मेरी गिरफ्त से
हाथ मलने की भी ख़बर बनती है

किसी तजुर्बे से कोई चोट लग गयी
फिर सँभलने की भी ख़बर बनती है

"उड़ता"मुश्क गलने की भी ख़बर बनती है
यादों को तलने की भी ख़बर बनती है



स्वरचित मौलिक रचना 


द्वारा - सुरेंद्र सैनी बवानीवाल "उड़ता"
झज्जर - 124103 (हरियाणा )

udtasonu2003@gmail.com

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